Indian Classical Music (Instrumental) ❤️ Raag Malkauns and Raag Bhairav
A rendition of Classical Instrumental Music | Raga Malkauns & Raga Bhairav | Indian Classical Music 00:03 - Raga Malkauns 05:45 - Raga Bhairav Raga Malkauns About - Malkauns is a raga in Indian classical music. It is one of the oldest ragas of Indian classical music. The equivalent raga in Carnatic music is called Hindolam, not to be confused with the Hindustani Hindol. Raag Bhairav About - Raga Bhairav is a Hindustani Classical heptatonic (Sampurna) Raag of Bhairav Thaat. Traditionally it is a morning raga. In modern times, typically in Khyal Gayaki, it is usually performed as the beginning piece in concerts. It is the defining raga of its own Thaat. Kalingada in Carnatic music has the same scale as the Bhairav in Hindustani music. Classical music is art music produced or rooted in the traditions of Western music (both liturgical and secular). It encompasses a broad span of time from roughly the 11th century to the present day. The two main traditions of classical music are Carnatic music, found predominantly in the peninsular regions, and Hindustani music, found in the northern, eastern and central regions. The basic concepts of this music includes shruti (microtones), swara (notes), alankar (ornamentations), raga (melodies improvised from basic grammars), and tala (rhythmic patterns used in percussion). Its tonal system divides the octave into 22 segments called shrutis, not all equal but each roughly equal to one quarter of a whole tone of Western music.
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राग
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संबंधित राग परिचय
मालकौन्स
राग मालकौन्स रात्रि के रागों में बहुत ही लोकप्रिय राग है। इस राग के युगल स्वरों में परस्पर संवाद अधिक होने से इसमें मधुरता टपकती है। इस राग का चलन विशेषतया मध्यम पर केंद्रित रहता है। मध्यम पर निषाद, धैवत तथा गंधार स्वरों पर आन्दोलन करके मींड के साथ आने से राग का स्वतंत्र अस्तित्व झलकता है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में समान रूप से किया जाता है। इस राग की प्रक्रुति शांत व गंभीर है। यह स्वर संगतियाँ राग मालकौन्स का रूप दर्शाती हैं -
ग१ ग१ म ; ,ध१ ,नि१ सा म ; ग१ म ग१ ; ग१ म ग१ सा ; म म ; ध१ ध१ नि१ नि१ ध१ म ; ग१ ग१ म ग१ सा ; ,नि१ ,नि१ सा ग१ ; सा ग१ म ध१ म ; म ध१ नि१ ध१ म ; ग१ म ध१ नि१; म ध१ नि१ ; नि१ सा' ; नि१ नि१ सा' ; ग१' म' ग१' सा' ; नि१ सा' ध१ नि१ ध१ म ; ग१ म ग१ नि१ ; नि१ ध१ ; ध१ म ग१ ग१ म ; ग१ सा;
राग मालकौंस ठाठ भैरवी से उत्पन्न माना जाता है.
इस राग की जाति- औडव-औडव है. रे व प वर्ज्य स्वर हैं,
गायन समय रात का तीसरा प्रहर है.
वादी - म, संवादी- सा
इस राग में ग, ध, व नि कोमल लगते हैं
आरोह- सा ग॒ म ध॒ नि॒ सां
अवरोह- सां नि॒ म ग॒ सा
पकड़- ध़॒ नि़॒॒॒ सा म, ग़॒ म ग़॒ सा
विशेषता- इस राग का चलन तीनों सप्तक में एक ही जैसा होता है
इस राग में अगर नि को शुद्ध कर दिया जाए तो यह राग चन्द्रकोश हो जाएगा
इस राग के न्यास के स्वर हैं - सा ग॒ म
इस राग में मींड, गमक और कण का खूब प्रयोग किया जाता है
कुछ विशेष स्वर संगतियाँ -
म ग॒ म ग॒ सा
ग॒ म ध़॒ नि़॒ सां
सां नि॒ ध॒ नि॒ ध॒ म
राग मालकौंस या मालकोश में सुनिये रशीद खां द्वारा गाई यह प्रसिद्ध बन्दिश (आज मोरे घर आये ...)
थाट
राग के अन्य नाम
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राग
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राग मालकोश का परिचय
राग मालकोश का परिचय
वादी: म
संवादी: सा
थाट: BHAIRAVI
आरोह: साग॒मध॒नि॒सां
अवरोह: सांनि॒ध॒म ग॒मग॒सा
पकड़: ध़॒ऩि॒साम ग॒मग॒सा
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-AUDAV
समय: रात्रि का तृतीय प्रहर
विशेष: वर्ज्य-रे प। न्यास-सा, ग॒, म। तीनों सप्तक में चलन।