युगानुयुगे हवेत सूर गुंजतील...
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक युग का सोमवार को अवसान हो गया। पर इस युग के पुरोधा और ‘भारत रत्न’ पंडित भीमसेन जोशी ने सुरों को उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया कि आने वाले कई युगों तक ये स्वर हवाओं में तैरते रहेंगे।
पंडित भीमसेन जोशी उन महान कलाकारों में से थे जो अपनी सुरमयी आवाज से हर्ष और विषाद दोनों ही भावों में जान डालकर श्रोताओं के दिल में गहरे तक बस चुके थे।
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રહેમાન માટે 'જય હો' પોકાર
ऐसा कहा जाता है कि रचनात्मकता के इलाके में काम की शुरूआत करने से पहले यह समझना बेहद जरूरी है कि आप जिस इलाके में काम करना चाहते है उस इलाके में पहले कौन-कौन किस तरह का बेहतरीन काम कर चुके हैं। यदि बात हिंदी फिल्म संगीत की की जाए तो यह दुनिया एक से एक मीठी और नशीली धुनों से लबालब है कि आप एक न उतरने वाले नशे में हमेशा झूमते-नाचते रहें। ऐसी-ऐसी उदास और दिल को किसी अथाह अंधेरे जल में डुबो देने वाली धुनें भी हैं कि आप देवदास बनकर आत्मघाती तक हों उठें।
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પંડિત રવિશંકર સિતાર વગાડવાનો પરિવાર છે.
पंडित रविशंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा गया है। वे केवल सितार वादक नहीं, बल्कि एक घराना हैं जिसका नई पीढ़ी के साधक अनुसरण कर रहे हैं।
पंडित रविशंकर देश के उन प्रमुख साधकों में से हैं, जो देश के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। वे लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुड़े रहे।
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પછી મેં મંગલેશ ડબરાલ દ્વારા રાગ દુર્ગાની ભાવનાત્મક રચના સાંભળી.
शास्त्रीय संगीत के विलक्षण कलाकार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत पंडित भीमसेन जोशी नहीं रहे। कवि मंगलेश डबराल ने उन पर सुंदर भावपूर्ण रचना लिखी थी। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है मंगलेश डबराल की संवेदनशील रचना :
राग दुर्गा
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રવીન્દ્રનાથ ટાગોર: સંગીત, કલા અને સાહિત્યનો અનોખો સંગમ
भारतीय राष्ट्रगान की रचयिता और काव्य, कथा, संगीत, नाटक, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाले और
चित्रकला के क्षेत्र में भी कलाकार के रूप में अपनी पहचान कायम करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को जोड़ासांको में हुआ था।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।