પંડિતજી શાસ્ત્રીય સંગીતના બેતાજ બાદશાહ છે

પ્રસિદ્ધ શાસ્ત્રીય ગાયિકા પદ્મશ્રી પદ્મજા ફેનાણી જોગલેકરે પંડિત ભીમસેન જોશીને ભારત રત્ન એનાયત થવા પર ખુશી વ્યક્ત કરી હતી અને કહ્યું હતું કે પંડિતજી શાસ્ત્રીય સંગીતના અપરિણીત રાજા છે અને તેમને આ સન્માન ઘણા સમય પહેલા મળવું જોઈતું હતું.

વેબદુનિયા સાથે વાત કરતી વખતે, સુશ્રી પદ્મજાએ કહ્યું કે પંડિત જોશીએ અપાર કષ્ટો સહન કર્યા પછી અવાજોનો મહેલ બનાવ્યો છે. તેમણે બાળપણમાં સંગીતને અનુસરવા માટે ઘર છોડી દીધું હતું. તેમણે સવાઈ ગંધર્વ સહિત અનેક ગુરુઓની સંગતમાં સખત કળાનો અભ્યાસ કર્યો.

भरतनाट्यम् ― तमिलनाडु

भरत नाट्यम, भारत के प्रसिद्ध नृत्‍यों में से एक है तथा इसका संबंध दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्‍य से है
* भरत नाट्यम में नृत्‍य के तीन मूलभूत तत्‍वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया है। 
* ये हैं भाव अथवा मन:स्थिति, राग अथवा संगीत और स्‍वरमार्धुय और ताल अथवा काल समंजन। 
* भरत नाट्यम की तकनीक में, हाथ, पैर, मुख, व शरीर संचालन के समन्‍वयन के 64 सिद्धांत हैं, जिनका निष्‍पादन नृत्‍य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है।

મધ્ય પ્રદેશના મુખ્ય લોકનૃત્ય

 1) करमा नृत्य : मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है। जो मंडला के आसपास क्षेत्रों में किया जाता है। करमा नृत्य गीत कर्म देवता को प्रशन्न करने के लिए किया जाता है। यह नृत्य कर्म का प्रतीक है। जो आदिवासी व लोकजीवन की कर्म मूलक गतिविधियों को दर्शाता है। यह नृत्य विजयदशमी से प्रारंभ होकर वर्षा के प्रारंभ तक चलता है। ऐसा माना जाता है कि करमा नृत्य कर्मराजा और कर्मरानी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है इसमें प्रायः आठ पुरुष व आठ महिलाएं नृत्य करती है। ये गोलार्ध बनाकर आमने सामने खड़े होकर नृत्य करते है। एक दल गीत उठता है और दूसरा दल दोहराता है | वाध्य यन्त्र मादल का प्रयोग

ભારતનું શાસ્ત્રીય અને લોક નૃત્ય

शास्त्रीय नृत्य राज्य
भरतनाट्यम तमिलनाडु
कथकली केरल
मोहिनीअट्टम केरल
ओडिसी उड़ीसा
कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश
मणिपुरी मणिपुर
कथक उत्तर भारत मुख्य रूप से यू.पी.
सत्त्रिया नृत्य असम

મણિપુર क्षेत्र से आया शास्‍त्रीय नृत्‍य मणिपुरी नृत्‍य है

पूर्वोत्तर के मणिपुर क्षेत्र से आया शास्‍त्रीय नृत्‍य मणिपुरी नृत्‍य है। 
* मणिपुरी नृत्‍य भारत के अन्‍य नृत्‍य रूपों से भिन्‍न है।
* इसमें शरीर धीमी गति से चलता है, सांकेतिक भव्‍यता और मनमोहक गति से भुजाएँ अंगुलियों तक प्रवाहित होती हैं। 
* यह नृत्‍य रूप 18वीं शताब्‍दी में वैष्‍णव सम्‍प्रदाय के साथ विकसित हुआ जो इसके शुरूआती रीति रिवाज और जादुई नृत्‍य रूपों में से बना है।
* विष्‍णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीत गोविंदम की रचनाओं से आई विषयवस्तुएँ इसमें प्रमुख रूप से उपयोग की जाती हैं।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय