प्रदीपकी
प्रदीपकी
राग प्रदीपकी काफी थाट जन्य राग है। इसमें दोनों गंधार, कोमल निषाद और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में ऋषभ धैवत वर्ज्य तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिये इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है। गायन समय दिन का तीसरा प्रहर है।
आरोह– नि सा ग म प नि सां।
अवरोह– सां नि ध प म ग रे सा।
- Read more about प्रदीपकी
- Log in to post comments
- 167 views
संबंधित राग परिचय
प्रदीपकी
राग प्रदीपकी काफी थाट जन्य राग है। इसमें दोनों गंधार, कोमल निषाद और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में ऋषभ धैवत वर्ज्य तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिये इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है। गायन समय दिन का तीसरा प्रहर है।
आरोह– नि सा ग म प नि सां।
अवरोह– सां नि ध प म ग रे सा।
- बोलचाल में इसे पटदीपकी भी कहते है। अधिकतर शुद्ध गंधार आरोह में और कोमल गंधार अवरोह में प्रयोग करते है।
- ऋषभ अवरोह में दूर्बल रखा जाता हैं। तार सा के साथ कभी-कभी शुद्ध नि भी प्रयोग कर लेते है।
- भीमपलासी और हंसकिंकणी से यह राग बहुत मिलता जुलता है। प्रदीपकी के आरोह में शुद्ध गंधार प्रयुक्त होने से भीमपलासी से अलग हो जाता है और मध्यम पर न्यास करने से हंसकिंकणी से अलग हो जाता है।
- कुछ लोग म- सा वादी संवादी मानते भी है। इसमें ऋषभ अल्प है।
स्वरूप– सा, नि सा ग म, ग म प म, ग रे सा, नि ध प, नि सा, सा म प म, म प ग म, नि ध प, म ग म, धपमप ग रे सा, नि सा। ध प म प सां, रें सां ग रें सां, नि सां गं मं ग रें सां, रें सां, नि ध प, म प म, ग म प म, ग रे सां।
Tags
राग
- Log in to post comments
- 167 views