काशी के संगीतकार
काशी के संगीतकार
काशी की अपनी एक विशेषता है। इस विशेषता में संगीत एक महत्वपूर्ण कड़ी रही है। भगवान शिव के ताण्डव नृत्य के अभिव्यक्ति में और उसमें धारण किये हुए डमरू के ध्वनि से संगीत व नृत्य कला का स्रोत माना जा सकता है। संगीत स्थान, समय, भाव व्यक्ति के अन्दर अन्तरर्निहित तरंगों की उच्च अवस्था से संगीत में निहित विभिन्न स्वरूपों की रचना होती है और वो विभिन्न रूपों में भावाभिव्यक्त होता है। काशी में शुरू से ही परम्पराओं के आदान-प्रदान हुए जिसके फलस्वरूप धार्मिक सत्संग, भजन-कीर्तन तथा अनेक विविध प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन होने लगे जिसमें सगीतज्ञों को अपनी कला को निखारने का अवसर प्रदान हुआ। साथ ही काशी और आस-पास के क्षेत्रों के आम लोगों का जीवन व लोक परम्परा, लोक जीवन (धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक) समृद्ध रहा है। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि निश्चित रूप से संगीत विद्या में संगीतज्ञों को सृजनात्मक रूप देने में सहायक हुआ होगा। काशी में बड़े-बड़े संगीतकारों ने संगीत की सेवा की यहां के संगीत को देश-विदेश में पहचान दिलाई संगीत के शिखर पर पहुँचे संगीतकारों का परिचय –
काशी के राजा बलवंत सिंह ने 1739 से 1770 ई0 तक अपने यहां चतुर बिहारी मिश्र, जगराज दास शुक्ल, कलावंत खां जैसे संगीतकारों को संरक्षण दिया। इन संगीतकारों ने अपनी कला से संगीत को नया आयाम दिया।
पण्डित शिवदास – पण्डित शिवदास एवं प्रयाग जी दोनों भाई संगीत में सिद्धहस्त थे। दोनों भाइयों को महाराजा ईश्वरीनारायण सिंह के दरबार में गायन का संरक्षण मिला था।
पण्डित मिठाई लाल मिश्र – मिठाई लाल मिश्र पण्डित प्रयाग के पुत्र थे। अपने पिता की विरासत यानी संगीत को आगे बढ़ाने में अमूल्य योगदान दिया। इनका गायन तथा वीणा वादन बेहद प्रसिद्ध था। एक बार पंजाब के प्रसिद्ध अली खां व फत्ते अली खां काशी में आये यहां मिठाई लाल मिश्र का गाना सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि तुरन्त उन्हें गले से लगा लिया।
पण्डित जगदीप मिश्र – काशी के ठुमरी सम्राट कहे जाने वाले जगदीप मिश्र की संगीत के क्षेत्र में बहुत ख्याति थी। पण्डित जगदीप मिश्र उस्ताद मौजूद्दीप के गुरू थे। इन्होंने ठुमरी को नया आयाम दिया।
बड़े रामदास – बड़े रामदास (1877-1960) को संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता शिव नन्दन मिश्र से प्राप्त हुई। बाद में अपने ससुर धुपदाचार्य पण्डित जयकरण मिश्र के मुख्य शिष्य हुए। बड़े रामदास बंदिशे, बनाने में बेजोड़ थे। ‘मोहन प्यारे’, ‘गोविन्द स्वामीं’ उपनाम से अनेक बंदिशों की रचनायें की। पण्डित बड़े रामदास भारत के प्रमुख संगीतज्ञों में स्थान रखते थे।
छोटे रामदास – पण्डित छोटे रामदास जी कन्हैयालाल के पुत्र थे। इन्होंने अपने नाना पण्डित ठाकुर प्रसाद मिश्र से संगीत की शिक्षा ख्याल टप्पा को सीखा। संगीत की इस विद्या में छोटे रामदास सिद्धहस्त थे। इन्होंने धुपद में नाम अर्जित किया।
पण्डित दरगाही मिश्र – पण्डित दरगाही मिश्र ऐसे कलाकार थे जिनके अन्दर गायन, तंत्रवादन, तबला व नृत्य जैसी विधाओsं का एक साथ समन्वय था।
पण्डित मथुरा जी मिश्र – पण्डित मथुरा जी मिश्र धुपद, ख्याल, टप्पा, ठुमरी के उच्चतम कोटि के कलाकार थे।
काशी में संगीतकारों में बहुत से नाम जो प्रमुख हैं।
- भूषत खां
- जीवन साह अंगुलीकत प्यारे खां
- ठाकुर दयाल मिश्र
- निर्मल साह
- जफर खां
- रबाबी
- बासत खां
- धुपदिये प्यारे खां
- उमराव खां
- मोहम्मद अली
- शोरी मियां
- शिवसहाय
- सादिक अली
- राआदत अली खा
- जाफर खां
- प्यारे खां
- बासत खां
- अली मोहम्मद
- मोहम्मद अली वारिस अली
- पण्डित मनोहर मिश्र
- पण्डित हरि प्रसाद मिश्र
- घीरेन बाबू
- बेनी माधव भट्ट
- दाऊ मिश्र
- पं0 चन्द्र मिश्र
- हरिशंकर मिश्र
- रामप्रसाद मिश्र ‘रामजी’
- महादेव मिश्र
- गणेश प्रसाद मिश्र
- जालपा प्रसाद मिश्र
- छोटे मियां
- उमा दत्त शर्मा
- Log in to post comments
- 337 views