क़सीदा
क़सीदा (फ़ारसी: قصيده) शायरी का वह रूप है जिसमें किसी की प्रशंसा की जाए। कुछ शायर अपने बेहतरीन क़सीदों के लिए विख्यात हुए हैं, जैसे कि मिर्ज़ा सौदा। क़सीदे लिखने का रिवाज अरब संस्कृति से आया है, जहाँ यह इस्लाम के आने से बहुत पूर्व से लिखे जा रहे हैं।
शब्द की जड़ें और उच्चारण
'क़सीदा' में 'क़' अक्षर के उच्चारण पर ध्यान दें क्योंकि यह बिना बिन्दु वाले 'क' से ज़रा भिन्न है। इसका उच्चारण 'क़ीमत' और 'क़रीब' के 'क़' से मिलता है। यह एक अरबी-मूल का शब्द है और 'क़सादा' शब्द से लिया गया है जिसका मतलब 'ध्येय या नियत रखना' है।
रूप और प्रकार
क़सीदों में हर शेर का दूसरा मिस्रा एक ही रदीफ़ और क़ाफ़िये (तुकान्त) में होता है। क़सीदे दो प्रकार के होते हैं। एक वह, जिसमें कवि प्रारम्भ से ही प्रशंसा करने लगता है और दूसरा वह जिसमें प्रारम्भ में एक तरह की भूमिका दी जाती है और कवि और बातों के अलावा वसंत, बहार, दर्शन, ज्योतिष आदि के विषय में कुछ कहता है। इन प्रारम्भिक वर्णनों को "तश्बीब" कहते हैं। तश्बीब के बाद कवि प्रशंसा करने की ओर अपने शेरों को मोडता है। इस मोड को गुरेज़ कहते है। इसका वर्णन बहुत मुश्किल समझा जाता है और इसी के द्वारा शायर के कमाल का अनुमान होता है। अच्छी गुरेज़ वह है जिसमें कवि 'तश्बीब' से 'तारीफ' (प्रशंसा) पर इस तरह आ जाए कि पढने वालों को यह पता ही न चले कि प्रशंसा का विषय ठूँस-ठाँसकर लाया गया है। क़सीदे के तीसरे अंग 'मदह' (प्रशंसा) के बाद चौथा अंग 'दुआ' होता है, जिसमें कवि 'ममदूह' (प्रशंसित व्यक्ति) के लिए शुभकामनाएँ करता हुआ उससे कुछ याचना करता है। इसी के बाद क़सीदा समाप्त हो जाता है।
मिसाल
लखनऊ के प्रसिद्ध शायर 'नासिख़' द्वारा लिखे किसी घोड़े पर एक क़सीदे का अंश इस प्रकार है -
मूल जुमले
रफ़्तार में औरंग-ए-सुलेमान है ये घोड़ा
पा' सीरत-ओ-ख़िलक़त में तो इंसान है ये घोड़ा
चमकाते ही जाता है ज़मीं से जो फ़लक पर
सब कहते हैं ख़ुरशाद-ए-दरख़्शाँ है ये घोड़ा
है जलवा, तमाशा-ए-जहाँ चाँद की मानिंद
रुतबे में फ़लक से भी दो-चन्दन है ये घोड़ा
गर्दन ये बुलंद उसकी है गुलशन में जो गुज़रा
क़ुमरी ने कहा सर्व-ए-ख़िरामाँ है ये घोड़ा
आता है पसीना जो उसे, आब-ए-बक़ा है
हैवाँ है तो क्या, चश्मा-ए-हैवाँ है ये घोड़ा
टीका
रफ़्तार में यह घोड़ा तख़्त-ए-सुलेमान१ है
चरित्र और प्रकृति से तो यह इंसान जैसा है
ज़मीन से आसमान पर जो जाता है२
सब कहते हैं कि यह घोड़ा एक चमकता (दरख़्शाँ) सूरज है
इसका जलवा दुनिया पर चाँद की तरह प्रकट होता है
लेकिन इसका ऊँचा स्थान आसमान से भी दुगना है
अपनी गर्दन ऊंची कर के जब बाग़ से गुज़रा
देखकर क़ुमरी३ ने कहा सनोबर४ की तरह सुन्दर हिलता है
उसका पसीना ऐसे है जैसे अमृत५
जानवर है तो क्या हुआ, जीवनदायी पानी का चश्मा है६
टिप्पणी
१. सुलेमान बहुत न्याय प्रीय राजा था, यानि उसके तख़्त (सिंहासन) से इंसाफ़ बरसता था
२. घोड़े की तेज़ी पकड़ने की तुलना सूरज के उदय होने से की जा रही है
३. क़ुमरी एक चिड़िया होती है जिसे 'कपोत' भी कहते हैं और अंग्रेज़ी में 'डव' (dove) कहते हैं
४. सनोबर (फ़ारसी में 'सर्व') के वृक्ष जैसा लम्बा और सजीला
५. आब-ए-बक़ा यानि 'अमरत्व का आब या पानी', जिसे अमृत भी कह सकते हैं
६. मूल वाक्य में 'हैवाँ' शब्द के साथ खेला गया है - पहली बार इसका मतलब 'हैवान' यानि 'जानवर' है और दूसरी बार 'जीवन' (हयात) है
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