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चर्खी का अर्थ

धौंसा

यह भी नगाडे की तरह का वाद्य है। यह आम या फरास की लकड़ी के घेरे पर भैंस का चमड़ा मढ़ कर बनाया जाता है। इसे गणगौर या अन्य मेलों की सवारी के समय घोड़े पर दोनों तरफ रख कर लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है। प्राचीन समय में रणक्षेत्र के वाद्य समूह में इसका वादन किया जाता था। कहीं-कहीं बड़े-बड़े मंदिरों में भी इसका वादन होता है। 

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