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कथक नृत्य माहिती मराठी

कथक नृत्य― उत्तर भारत

कथक का नृत्‍य रूप 100 से अधिक घुंघरु‍ओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्‍कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्‍दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्‍तुओं का नाटकीय प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है। 
* कथक का जन्‍म उत्तर में हुआ किन्‍तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।
* इस नृत्‍य परम्‍परा के दो प्रमुख घराने हैं, इन दोनों को उत्तर भारत के शहरों के नाम पर नाम दिया गया है और इनमें से दोनों ही क्षेत्रीय राजाओं के संरक्षण में विस्‍तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुरघराना।

कथक नृत्य

कथक न्रुत्य उत्तर प्रदेश क शास्त्रिय न्रुत्य है। कथक कहे सो कथा केह्लाये। कथक शब्द क अर्थ कथा को थिरकते हुए कहना है। प्रछिन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।

कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। वर्तमान समय में बिरजू महाराज इसके बड़े व्याख्याता रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।

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