भारतीय नृत्य प्रकार
ओड़िसी― ओड़िसा
ओड़िसी को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्य रूपों में से एक माना जाता है।
* ओड़िसा के पारम्परिक नृत्य, ओड़िसी का जन्म मंदिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था।
* ओड़िसी नृत्य का उल्लेख शिला लेखों में मिलता है, इसे ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिला लेखों में दर्शाया गया है साथ ही कोणार्क के सूर्य मंदिर के केन्द्रीय कक्ष में इसका उल्लेख मिलता है।
* वर्ष 1950 में इस पूरे नृत्य रूप को एक नया रूप दिया गया, जिसके लिए अभिनय चंद्रिका और मंदिरों में पाए गए तराशे हुए नृत्य की मुद्राएं धन्यवाद के पात्र हैं।
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ओडिसी नृत्य
ओडिसी नृत्य को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्य रूपों में से एक माना जाता है। इसका जन्म मन्दिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था। ओडिसी नृत्य का उल्लेख शिलालेखों में मिलता है। इसे ब्रह्मेश्वर मन्दिर के शिलालेखों में दर्शाया गया है।
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कत्थक नृत्य और रास
वर्तमान रास-नृत्य, कत्थक-नृत्य से प्रभावित कहे जा सकते है परन्तु हमारे विचार से यह कत्थक से संबंधित होते हुए भी स्वतंत्र है। इसका कारण शायद यह रहा कि प्राची परम्परा का प्रभाव इन नृत्यों पर भक्ति युग में भी बना रहा होगा और उसी को वल्लभ ने अपना आधार बनाया होगा। रास के प्राचीन नृत्यों में चर्चरी का उल्लेख हुआ है। यह चर्चरी नृत्य रास में आज से लगभग चालीस-पचास साल पहले तक होता रहा है, परन्तु अब लुप्त हो गया है। रास-नृत्य में धिलांग का भी उपयोग है जो बहुत ही प्रभावशाली और अनूठा है। यह कथक या किसी अन्य नृत्य-शैली में नहीं मिलता। इसी प्रकार श्री कृष्ण रास में जो घुटनों का नाच नाचते है वह भी बेजोड़ ह
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लुड्डी नृत्य
लुड्डी उत्तरी भारत और पाकिस्तान में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
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