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Raag

भूपाल तोडी

राग भूपाल तोडी, शुद्धता और पवित्रता का सूचक है। इसलिये इस राग में भक्ति रस से परिपूर्ण बन्दिशें अधिक सुनायी देतीं हैं। राग भूपाली में राग तोडी जैसे स्वर लेने पर राग भूपाल तोडी सामने आता है। यह राग तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाल तोडी का रूप दर्शाती हैं -

सा ,ध१ सा ; ,ध१ रे१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ रे१ सा ; रे१ रे१ ग१ रे१ ; ग१ प रे१ रे१ ग१ ; ग१ प ध१ प ; ध१ सा' ; ध१ प ; प रे१ ग१ रे१ सा ; ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा ;  

भूपाली

यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।

विभास

राग देशकार के रिषभ और धैवत कोमल कर देने से ही राग विभास बन जाता है। इस राग में राग भैरव के समान रिषभ और धैवत पर आंदोलन नही करना चाहिये। इस राग में गंधार और पंचम की संगति बहुत मधुर लगती है, जैसे - प ध१ प ग प ; सा ग प ग प ; सा' ध१ प ग प। इस राग में तान के अंत में पंचम पर न्यास किया जाता है जैसे - प ध१ प ग प ; ध१ सा' ध१ प ध१ प ग प ; ग प ध१ प ग प ग रे१ सा

विभास गम्भीर प्रकृति का राग है, तथा भक्ति रस कि बन्दिशों के लिये अधिक उपयुक्त है।

यमन

प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद।

जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥

राग का परिचय -

1) इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है (जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो)। मुगल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरु किया।

2) इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम का प्रयोग किया जाता है। बाक़ी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं।

ललित

राग ललित एक बहुत ही मधुर राग है। इस राग में दोनों मध्यम (तीव्र व शुद्ध मध्यम) एक साथ (म् म ; ग म् म ; नि ध१ म् म) प्रयोग होने के कारण इस राग का एक अलग ही वातावरण तैयार होता है। इस राग का धैवत, वास्तविक कोमल धैवत से थोड़ा चढ़ा हुआ होता है, जो शुद्ध धैवत और कोमल धैवत के बीच की श्रुति है, जिसे सिर्फ गुरुमुख से ही सीखा जा सकता है। इस राग में शुद्ध मध्यम और शुद्ध गंधार बहुत ही महत्वपूर्ण स्वर हैं। यह स्वर संगतियाँ राग ललित का रूप दर्शाती हैं -

राग के अन्य नाम

रागेश्री

यह बहुत ही मधुर राग है। संगीत शास्त्रों के अनुसार राग रागेश्री में निषाद शुद्ध और निषाद कोमल का प्रयोग बताया गया है। परन्तु वर्तमान में इस राग में सिर्फ कोमल निषाद ही उपयोग में लाया जाता है। और शुद्ध निषाद का प्रयोग बहुत ही अल्प रूप में दिखाई देता है।

लंका-दहन सारंग

यह सारंग का प्राचीन प्रकार है जो की वर्त्तमान में अधिक प्रचलन में नहीं है। राग वृंदावनी सारंग के अवरोह में धैवत और कोमल गंधार का उपयोग होने से इस राग का स्वरुप प्रकट होता है। इस राग में कोमल गंधार का प्रयोग इस तरह से किया जा सकता है जैसे - ध प रे ग१ रे सा - देसी समान या रे ग१ रे सा - जयजयवंती समान। ध नि१ प का प्रयोग बहुत ही अल्प है और धैवत का उपयोग भी कभी कभी ही किया जाता है।

रामदासी मल्हार

राग रामदासी मल्हार एक बहुत ही मधुर लेकिन अप्रसिद्ध राग है। यह राग शहंशाह अकबर के दरबार गायक श्री रामदास जी द्वारा निर्मित है। दोनों गंधार लगने के कारण यह सभी मल्हार के प्रकारों से भिन्न हो जाता है। अवरोह में कोमल गंधार वक्र रूप से लगाया जाता है जैसे- प ग म रे सा ; और आलाप और तानों का अंत इन्ही स्वरों से होता है। इस राग में मध्यम-रिषभ (म-रे), रिषभ-पंचम (रे-प) और निषाद-पंचम (नि-प) की संगति होती है।

श्री

राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया गया है। ये 6 पुरुष राग हैं - राग भैरव, राग मालकौंस, राग हिंडोल, राग श्री, राग दीपक और राग मेघ-मल्हार।

श्याम कल्याण

राग श्याम कल्याण बडा ही मीठा राग है। यह कल्याण और कामोद अंग (ग म प ग म रे सा) का मिश्रण है।

इस राग को गाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। गंधार आरोह मे वर्ज्य नही है, तब भी ग म् प नि सा' नही लेना चाहिये, बल्कि रे म् प नि सा' लेना चाहिये। गंधार को ग म प ग म रे साइस तरह आरोह में लिया जाता है। सामान्यतः इसका अवरोह सा' नि ध प म१ प ध प ; ग म प ग म रे सा इस तरह से लिया जाता है। अवरोह में कभी कभी निषाद को इस तरह से छोड़ा जाता है जैसे - प सा' सा' रे' सा' नि सा' ध ध प