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भैरव

शिवमत भैरव

संक्षिप्त परिचय:- इस राग की रचना भैरव थाट से मानी गई है। इसमें दोनों गंधार, दोनों निषाद, तथा ऋषभ- धैवत कोमल प्रयोग किये जाते हैं। जाति वक्र संम्पूर्ण है। वादी स्वर धैवत और संवादी ऋषभ है। गायन समय प्रातःकाल है।
आरोह– सा रे ग म प ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, नि ध प म ग म रे सा, नि सा ग रे सा।

शिवमत भैरव विशेषता:-

बैरागी

राग बैरागी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। यह बहुत ही कर्णप्रिय राग है और भक्ति रस से परिपूर्ण है। इस राग में किसी भी तरह का बन्धन नही है, इसलिये यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग भैरव थाट के अंतर्गत आता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी का रूप दर्शाती हैं -

,नि१ सा रे१ म प नि१ ; म नि१ प ; नि१ प म प म रे१ ; ,नि१ सा ; रे१ म प नि१ प ; म प नि१ नि१ सा' ; नि१ प नि१ सा' रे१' सा' ; रे१' सा' नि१ रे१' सा' नि१ प म ; प म रे१ सा ; ,नि१ सा रे१ सा ;

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