Mand
राग मांड चंचल तथा क्षुद्र प्रक्रुति का, सुनने में सहज परंतु गायन वादन में कठिन राग है। मांड गायन वादन का विशेष प्रचार मारवाड में है। राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात के गीत, लोकगीत आदि इस राग की लहरियों से सजे हुए हैं।
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Marwa
राग मारवा माधुर्य से परिपूर्ण राग है। इस राग में रिषभ और धैवत प्रमुख स्वर हैं। जिस पर बार बार ठहराव किया जाता है, जिससे राग मारवा स्पष्ट होता है। इस राग का विस्तार क्षेत्र सीमित है। राग पूरिया इसका सम प्राकृतिक राग है। परंतु राग पूरिया में गंधार और निषाद पर ज्यादा न्यास किया जाता है। इस राग का विस्तार मध्य सप्तक में ज्यादा किया जाता है। इस राग को गाने से वैराग्य भावना उत्पन्न होती है।
यह स्वर संगतियाँ राग मारवा का रूप दर्शाती हैं - सा ; ,नि ,ध ,नि रे१ ; ग म् ध ; म् ग रे१ ; ,नि ,ध रे१ सा ; म् ध ; ध नि रे१' नि ध ; म् ध ; म् ग रे१ ; ग रे१ ,नि ,ध रे१ सा ;
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Malhar
संगीत सम्राट तानसेन द्वारा अविष्क्रुत इस राग का मौसमी रागों में प्रमुख स्थान है। वर्षा ऋतु में जाया जाने वाला यह राग मियाँ मल्हार भी कहलाता है। इसके अवरोह में दोनों निषाद साथ साथ भी लेते हैं, जिसमें पहले कोमल निषाद को धैवत से वक्र करके बाद में शुद्ध निषाद का प्रयोग करते हैं जैसे - प नि१ ध नि सा'। मींड में कोमल निषाद से शुद्ध निषाद लगाकर षड्ज तक पहुँचा जा सकता है। अवरोह में कोमल निषाद का ही प्रयोग होता है।
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Maluha
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Madhuvanti
यह अपेक्षाकृत नया राग है। पूर्व में यह राग अम्बिका के नाम से जाना जाता था। यह श्रृंगार रस से परिपूर्ण होने के कारण श्रोताओं पर अपना गहरा प्रभाव डालता है। इसके पास का राग मुलतानी है। राग मुलतानी में रिषभ और धैवत को शुद्ध करके गाने पर यह राग मधुवंती हो जाता है। विशेष कर आलाप लेते समय अवरोह में रिषभ के साथ 'सा' को कण स्वर के रूप में लगाया जाता है जैसे - म् ग१ सारे सा।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।