सानाई
सुषिर वाद्य फूंक कर बजाये जाते हैं। उनमें आड़बांसी या बांसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।
शहनाई का है भारत से है पुराना नाता
भारत में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है। शहनाई भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्रों में से है। शहनाई का प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।
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मदनभेरी
झारखण्ड के निवासियों के लिए नृत्य, गीत और संगीत प्राण हैं। सब में कई प्रकार के वाद्यों का प्रयोग होता है। विभिन्न प्रकार के गीत-संगीत, नृत्य, उत्सव, पर्व तथा त्योहार आदि पर ये वाद्य बजाए जाते हैं। ये वाद्य यंत्र झारखण्ड की संस्कृति की प्रमुख पहचान हैं।
सुषिर वाद्य है मदनभेरी
सुषिर वाद्य फूंक कर बजाये जाते हैं। उनमें आड़बांसी या बांसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।
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ढाक
ढाक आकार में मांदर और ढोल से बड़ा होता है। इसमें गमहर लकड़ी के ढांचे में मुंह को बकरे की खाल से ढंक कर बध्दी से कस दिया जाता है। इसे कंधे से लटका कर दो पतली लकड़ी के जरिये बजाया जाता है।
जुड़ी नागरा, कारहा, ढप, खंजरी, चांगु, डमरू आदि भी चमड़े से निर्मित ऐसे वाद्य हैं, जो झारखंड के विभिन्न इलाकों में बजते हैं। खास-खास समय और अवसरों पर खास वाद्य का इस्तेमाल ज्यादा होता है। हालांकि ये सब सहायक ताल वाद्य हैं।
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मांदर
अवनध्द वाद्य मुख्यत: चमड़े के वाद्य हैं। झारखण्ड में चमड़ा निर्मित वाद्यों की संख्या सबसे अधिक है। उनको ताल वाद्य भी कहा जाता है। उनमें मांदल या मांदर, ढोल, ढाक, धमसा, नगाड़ा, कारहा, तासा, जुड़ी-नागरा, ढप, चांगु, खंजरी, डमरू, विषम ढाकी आदि आते हैं। उनमें मांदर, ढोल, ढाक, डमरू, विषम ढकी आदि मुख्य ताल वाद्य हैं। धमसा, कारहा, तासा, जुड़ी नागरा आदि गौण ताल वाद्य हैं। वे सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।
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भुआंग
एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है।
भारतीय वाद्य यंत्रों को मोटे तौर पर चार वर्गों में बांटा जा सकता है- तारयुक्त वाद्ययंत्र, हवा से बजने वाले वाद्ययंत्र, झिल्ली के कम्पन वाले वाद्ययंत्र तथा इडियोफोन।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।