यमनी बिलावल
यमनी बिलावल राग की रचना कल्याण थाट से मानी गई है। इसमें दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इसकी जाति सम्पूर्ण मानी जाती है। वादी स्वर पंचम और संवादी षडज है। गायन समय प्रातःकाल दिन का प्रथम प्रहर है।
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जैत कल्याण
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है। सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। मध्यम और निषाद वर्ज्य होने से इसकी जाति ओडव मानी जाती है। वादी पंचम और संवादी ऋषभ है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
- पकड़– रे म॑प, ध प म॑प, ग म रे, ग नि सा।
- थाट – कल्याण थाट
- वर्ज्य स्वर – आरोह में गंधार और धैवत वर्ज्य है
- जाति – औडव-औडव
- वादी – संवादी – प – रे
गायन समय -गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
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चाँदनी केदार
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई हैं। दोनों मध्यम, दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। आरोह में ऋषभ, गंधार वर्जित तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते है, इसलिये इसकी जाति ओडव- सम्पूर्ण है। वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। चलन वक्र है।
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गोपिकाबसन्त
इसे आसावरी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल लगते है। ऋषभ वर्ज्य होने की वजह से इसकी जाति षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।
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काफी कान्हडा
इसे काफी थाट जन्य माना गया है। गंधार और निषाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। जाति वक्र सम्पूर्ण है। वादी स्वर पंचम और संवादी षडज माना जाता है। रात्रि के दूसरे प्रहर में इसे गाते बजाते है।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।