गायक पंडित वामनराव सादोलीकर
पंडित वामनराव सादोलीकर (१६ सितंबर १९०७ - २५ मार्च १९९१) जयपुर-अतरौली घराने के एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे, जिसकी स्थापना उनके गुरु उस्ताद अल्लादिया खान ने की थी।
• प्रारंभिक जीवन :
पंडित वामनराव सादोलीकर का जन्म कोल्हापुर में संगीत प्रेमियों के परिवार में हुआ था। एक किशोर के रूप में, उन्होंने ग्वालियर घराने के पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के तहत शास्त्रीय संगीत का अध्ययन किया।
कैरियर:
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जोहराबाई अग्रवाल
जोहराबाई अग्रवाल (1868-1913) १९०० के दशक की शुरुआत से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली गायकों में से एक थीं। गौहर जान के साथ, वह भारतीय शास्त्रीय संगीत में शिष्टाचार गायन परंपरा के अंतिम चरण का प्रतीक हैं। वह गायन की अपनी माचो शैली के लिए जानी जाती हैं।
• प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि:
वह आगरा घराने से संबंधित थीं (अग्रणी = आगरा से)। उन्हें उस्ताद शेर खान, उस्ताद कल्लन खान और प्रसिद्ध संगीतकार महबूब खान (दारस पिया) द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।
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रवीन्द्रनाथ टैगोर : संगीत, कला और साहित्य का विलक्षण संगम
भारतीय राष्ट्रगान की रचयिता और काव्य, कथा, संगीत, नाटक, निबंध जैसी साहित्यिक विधाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ देने वाले और
चित्रकला के क्षेत्र में भी कलाकार के रूप में अपनी पहचान कायम करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को जोड़ासांको में हुआ था।
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तभी सुनाई दिया मुझे राग दुर्गा मंगलेश डबराल की भावपूर्ण रचना
शास्त्रीय संगीत के विलक्षण कलाकार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत पंडित भीमसेन जोशी नहीं रहे। कवि मंगलेश डबराल ने उन पर सुंदर भावपूर्ण रचना लिखी थी। वेबदुनिया पाठकों के लिए प्रस्तुत है मंगलेश डबराल की संवेदनशील रचना :
राग दुर्गा
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सितार वादन का घराना हैं पंडित रविशंकर
पंडित रविशंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा गया है। वे केवल सितार वादक नहीं, बल्कि एक घराना हैं जिसका नई पीढ़ी के साधक अनुसरण कर रहे हैं।
पंडित रविशंकर देश के उन प्रमुख साधकों में से हैं, जो देश के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। वे लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुड़े रहे।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।