Pandit D.V. Paluskar | Raag Ramkali | Akashvani Sangeet
Prasar Bharati Central Archives series of Akashvani Sangeet - Pandit D.V. Paluskar, Hindustani Classical Vocal Born in 1921.
D V Paluskar gave his debut performance at the Harballabh Sangeet Sammelan in Jalandhar, Punjab at the age of fourteen. He inherited the styles of the Gwalior gharana and the Gandharva Mahavidyalaya.
A very quiet, modest and humble person, wholly immersed in his music, D V Paluskar had a clear and melodious voice and a unique, effortless enchanting style. He is also famous for an unforgettable duet with Ustad Amir Khan in the film Baiju Bawra.
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संबंधित राग परिचय
रामकली
ये भैरव अंग का राग है। इसमें रिषभ और धैवत पर राग भैरव की तरह अन्दोलन नहीं किया जाता। इस राग को भैरव से अलग दिखाने के लिये इसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में विशेष किया जाता है। इसलिये यह उत्तरांग प्रधान राग है। इसमें तीव्र मध्यम और कोमल निषाद का उपयोग एक विशिष्ठ प्रकार से केवल अवरोह में किया जाता है, जैसे - म् प ध१ नि१ ध१ प ; ग म रे१ सा। उक्त स्वर अवरोह में बार बार लेने से राग रामकली का स्वरूप राग भैरव से अलग स्पष्ट होता है।
प्रात: कालीन राग रामकली और उसकी अभिव्यक्ति
रामकली एक प्रातःकालीन राग है। यह अक्सर सिख भक्ति परंपराओं के साथ जुड़ा हुआ है - कई सिख पवित्र पुरुषों ने इसमें रचना की है, और एक लेखक ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है: “रामकली में भावनाएं अपने छात्र को अनुशासित करने वाले एक बुद्धिमान शिक्षक की तरह हैं। छात्र सीखने के दर्द से अवगत है, लेकिन इस तथ्य के बारे में अभी भी जागरूक है कि अंततः यह सबसे अच्छा है। इस तरह से रामकली उन सभी से बदलाव को बताती है जिनसे हम परिचित हैं, कुछ के लिए जो हम निश्चित हैं वह बेहतर होगा।”
राग रामकली राग भैरव के समान है, यह राग स्वर (सा रे गा म प् धा नी सा) पर धुनों को आधार बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन यह
उच्चतर रूप से गाया जाता है, मुख्य रूप से माद्य और तारा सप्तक [मध्य और उच्च सप्तक] का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, रे और धा राग भैरव में उतने अधिक दोलन के साथ नहीं खेले जाते हैं जितने अधिक दोलन के साथ इसमें खेले जाते हैं। रे को आम तौर पर चढ़ाई में छोड़ा जाता है, तीव्र [sharp] मा का उपयोग वंश में किया जा सकता है, और कोमल [Flat] नी के उत्कर्ष की अनुमति है।
मंजुशा कुलकर्णी-पाटिल का जन्म सांगली के महाराष्ट्र गाँव में हुआ था, जो शानदार संगीतकारों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध थे। मंजुशा जी ने चिंटुबुआ म्हैस्कर, डीवी कानेबुआ, नरेंद्र कानेकर, और विकास काशलकर के साथ गाना सीखा, और सम्मानित विद्वान-गायक उल्हास काशलकर के साथ अध्ययन करना जारी रखा। आज मंजुशा जी आगरा और ग्वालियर घराने की शैलियों में ख्याल गाती है, और विशेषज्ञत: ठुमरी, दादरा, अभंग और नाट्य संगीत (‘नाटकीय संगीत’) भी करती है। मंजुशा जी प्राकृतिक दुनिया से बहुत प्रेरणा लेती है, अपनी आवाज़ के साथ हवा की आवाज़ की नकल करने की कोशिश करती है और प्रत्येक राग और उसके प्रहर (दिन का निर्धारित समय) के बीच संबंध महसूस करती है।
इस रविवार प्रारंग आपके लिए लेकर आया है प्रात:कालीन राग रामकली का चलचित्र जिसके अन्दर संगीतकार मंजुशा कुलकर्णी द्वारा प्रस्तुती को प्रदर्शित किया गया है और इस चलचित्र को दरबार नामक यूटयूब चैनल द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
राग रामकली – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी
राग रामकली
……………
मैया री मैं चंद लहौंगौ ।
कहा करौं जलपुट भीतर कौ, बाहर ब्यौंकि गहौंगौ ॥
यह तौ झलमलात झकझोरत, कैसैं कै जु लहौंगौ ?
वह तौ निपट निकटहीं देखत ,बरज्यौ हौं न रहौंगौ ॥
तुम्हरौ प्रेम प्रगट मैं जान्यौ, बौराऐँ न बहौंगौ ।
सूरस्याम कहै कर गहि ल्याऊँ ससि-तन-दाप दहौंगौ ॥
भावार्थ / अर्थ :– (श्याम ने कहा-) ‘मैया! मैं चन्द्रमाको पा लूँगा । इस पानीके भीतरके
चन्द्रमाको मैं क्या करूँगा, मैं तो बाहरवालेको उछलकर पकड़ूँगा । यह तो पकड़ने का
प्रयत्न करने पर झलमल-झलमल करता (हिलता) है, भला, इसे मैं कैसे पकड़ सकूँगा ।
वह (आकाशका चन्द्रमा) तो अत्यन्त पास दिखायी पड़ता है, तुम्हारे रोकनेसे अब रुकूँगा
नहीं । तुम्हारे प्रेमको तो मैंने प्रत्यक्ष समझ लिया (कि मुझे यह चन्द्रमा भी नहीं
देती हो) अब तुम्हारे बहकाने से बहकूँगा नहीं ।’ सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर
(हठपूर्वक) कह रहे हैं -‘मैं चन्द्रमाको अपने हाथों पकड़ लाऊँगा और उसका जो (दूर
रहनेका) बड़ा घमंड है, उसे नष्ट कर दूँगा ।’
थाट
समप्रकृति राग
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राग
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राग रामकली का परिचय
राग रामकली का परिचय
वादी: ध॒
संवादी: रे॒
थाट: BHAIRAV
आरोह: सागमपध॒निसां
अवरोह: सांनिध॒पम॓पध॒नि॒ध॒पगमरे॒सा
पकड़: पध॒म॓प म॓पध॒नि॒ध॒प गमनि॒ध॒प
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर
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राग रामकली का परिचय
राग रामकली का परिचय
वादी: ध॒
संवादी: रे॒
थाट: BHAIRAV
आरोह: सागमपध॒निसां
अवरोह: सांनिध॒पम॓पध॒नि॒ध॒पगमरे॒सा
पकड़: पध॒म॓प म॓पध॒नि॒ध॒प गमनि॒ध॒प
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर