राग हंसकिंकिणी - राग हंसकिंकिणी- तीनताल
Raga Hanskinkini - Raga Hanskinkini - Teentaal · Ustaad Bismillah Khan · Traditional · Raees Khan The Shehnai Maestro: Ustad Bismillah Khan ℗ 2019 Living Media India Ltd Released on: 2019-04-01
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संबंधित राग परिचय
हंसकिंकिणी
यह राग कम प्रचलन में है। इसके निकटतम राग हैं - राग प्रदीपकी, धनाश्री और भीमपलासी। यह राग धनाश्री अंग से गाया जाता है। म प नि१ ध प ; सा' नि१ ध प ; म प ग रे सा; - यह स्वर समुदाय धनाश्री अंग बताता है। हंस किंकिणी में कोमल गंधार (म प ग१ रे सा) लगाने से यह राग धनाश्री से अलग हो जाता है।
हंस किंकिणी में पंचम-गंधार की संगति होने से इसमें राग पीलु का आभास होता है। लेकिन राग पीलु में प ग ,नि सा ऐसा लिया जाता है किन्तु हंस किंकिणी मे प ग रे सा ऐसा लिया जाता। इस राग की प्रकृति चंचल होने की वजह से इसे गाते समय खट्के और मुरकियोँ का काफी प्रयोग किया जाता है।
यह स्वर संगतियाँ राग हंस किंकिणी का रूप दर्शाती हैं - ,नि सा ग म प ग१ रे ; सा रे ,नि सा ; ग म प नि१ ध प ग म प ग१ रे सा;
थाट
राग जाति
गायन वादन समय
राग के अन्य नाम
Tags
राग
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राग हंसकिंकणी का परिचय
राग हंसकिंकणी को काफी थाट के अन्तर्गत माना गया है। आरोह में ऋषभ और धैवत वर्ज्य होने से इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण मानी जाती है। दोनों गंधार तथा दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। गायन समय दिन का तृतीय प्रहर है। वादी स्वर पंचम और संवादी षडज है।