बड़हंस सारंग

बड़हंस सारंग राग काफी थाट जन्य माना गया है। गंधार और धैवत वर्ज्य होने से इसकी जाति ओडव है। वादी स्वर म और संवादी सा है। गायन समय दिन का तीसरा प्रहर है। दोनों निषादों के अतिरिक्त सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल निषाद प्रयोग किया जाता है।

आरोह– सा रे म, रे म प, नि सां।

अवरोह– सां नि प म, ध प म रे, रे ऩि सा।

पूर्वी

राग पूर्वी सायंकाल संधि प्रकाश के समय गाया जाने वाला राग है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग का विस्तार मन्द्र तथा मध्य सप्तक में अधिक होता है। इस राग की प्रक्रुति गम्भीर है।

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय