मलुहा
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मधुकौंस
राग मधुकौंस अपेक्षाकृत नया राग है और अत्यंत प्रभावशाली वातावरण बनाने के कारण, कम समय में ही पर्याप्त प्रचलन में आ गया है। गंधार कोमल से मध्यम तीव्र का लगाव, इस राग में व्यग्रता का वातावरण पैदा करता है जो विरहणी की व्यग्रता को दर्शाता हुआ प्रतीत होता है। इसलिए इस राग में विरह रस की बंदिशें अधिक उपयक्त होती हैं। यह मींड प्रधान राग है। गुणीजन इस राग को राग मधुवंती और राग मालकौंस का मिश्रण मानते हैं। सा ग१ म् प - इन स्वरों से मधुवंती का स्वरुप दिखता है और गंधार कोमल से षड्ज पर आते समय गंधार कोमल को दीर्घ रख कर मींड के साथ षड्ज पर आते हैं जिसमें कौंस का रागांग झलकता है।
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मधमाद सारंग
राग मधुमाद सारंग को मधमाद सारंग या मध्यमादी सारंग भी कहा जाता है। इस राग के स्वर राग बृंदावनी सारंग के ही सामान है परन्तु इस राग में सिर्फ कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। इस राग के पूर्वांग में पंचम-रिषभ (प-रे) तथा उत्तरांग में निषाद-पंचम (नि१-प) की संगती राग वाचक है।
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बैरागी
राग बैरागी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। यह बहुत ही कर्णप्रिय राग है और भक्ति रस से परिपूर्ण है। इस राग में किसी भी तरह का बन्धन नही है, इसलिये यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग भैरव थाट के अंतर्गत आता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी का रूप दर्शाती हैं -
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बैरागी तोडी
राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी के मध्यम की जगह कोमल गंधार लेने से राग बैरागी तोड़ी अस्तित्व में आता है। यह राग तोड़ी थाट के अंतर्गत आता है। इसका चलन राग तोडी के समान है इसलिये इसमें गंधार अति कोमल लिया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी तोडी का रूप दर्शाती हैं -
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।