તેરે સુર ઔર મેરે ગીત
तेरे सुर और मेरे गीत,दोनों मीलकर बनेंगी प्रीत ....सुंदर गीत हैं न! जानते हैं किस राग मैं हैं ?यह हैं राग बिहाग .पिछली पोस्ट में हमने जाना . राग क्या होता हैं ?शुध्द ,विकृत स्वर क्या होते हैं ?और जाना राग यमन .
आज हम जानेंगे राग बिहाग और राग से सम्बंधित कुछ और महत्व पूर्ण तथ्य .
हम सभी जानते हैं की राग थाट से उत्पन्न होता हैं ,तो राग बिहाग का थाट हैं बिलावल ,थाट बिलावल में सब स्वर शुध्द होते हैं,और राग बिहाग में भी सब स्वर शुध्द होते हैं .
इस राग में सारे स्वर लगते हैं पर आरोह में रे ध वर्जित हैं .
आरोह हैं ..
सा ग म प नि सां
आवरोह हैं
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ભારતીય સંગીતમાં આધ્યાત્મિકતાના સ્ત્રોત
भारतीय संगीत मूल रूप में ही आध्यात्मिक संगीत है। भारतीय संगीत को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना है तो कहीं साक्षात ईश्वर माना गया है। अध्यात्म अर्थात व्यक्ति के मन को ईश्वर में लगाना व व्यक्ति को ईश्वर का साक्षात्कार कराना अध्यात्म कहलाता है संगीत को अध्यात्मिक अभिव्यक्ति का साधन मानकर संगीत की उपासना की गई है। संगीत को ईश्वर उपासना हेतु मन को एकाग्र करने का सबसे सशक्त माध्यम माना गया है। वेदों में उपासना मार्ग अत्यंत सहज तथा ईश्वर से सीधा सम्पर्क स्थापित करने का सरल मार्ग बताया है। संगीत ने भी उपासना मार्ग को अपनाया है।
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ઓહ માય ગોડ ધીસ ઈઝ સો સ્કેરી - યુનિક યુનિક યુનિક
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રાજશેખર મન્સુર
Rajshekhar Mansur (born 16 December 1942) is an Indian classical vocalist of the Jaipur-Atrauli gharana. He is the son and disciple of vocalist Mallikarjun Mansur.
Early life and education
Mansur was born to singer Mallikarjun Mansur, one of the leading singers of the Jaipur-Atrauli gharana. At the age of 18 he won the gold medal in the Sangeet Visharad exam and went on to take first prize in the AIR Youth Music Competition.
He completed his M.A. in English Literature and an M.A. in Linguistics from the University of Wales on a British Council Scholarship.
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મલ્લિકાર્જુન મન્સુર
Mallikarjun Mansur (31 December 1910 – 12 September 1992) was an Indian classical singer from Karnataka, an excellent vocalist in the khyal style in the Jaipur-Atrauli gharana (singing style).
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।