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आनंद भैरव

भैरव के ही मेल में, धैवत शुद्ध संयोग।
सम सम्वाद प्रात समय, बिलावल भैरव योग।।
राग-आनंद भैरव राग बिलावल थाट जन्य माना गया है। इसमें ऋषभ कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध माने जाते हैं। गायन समय प्रातःकाल है। वादी म और संवादी सा है। जाति संपूर्ण है।

आरोह– सा रे ग म प ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, म ग म रे – रे सा।
पकड़– ग म रे – रे सा,  नि ध प सा।

 

विशेषता:-

  1. यह भैरव का एक प्रकार है। नाम से ऐसा पता चलता है कि इसमें आनन्दी और भैरव का योग है, किन्तु ऐसा नहीं है। इसमें भैरव और बिलावल रागों का मेल है।
  2. इसमे भैरव का अंश होने के नाते इसका ऋषभ आंदोलित होता है और अवरोह में गंधार वक्र प्रयोग किया जाता है।
  3. कभी कभी आरोह में भी ऋषभ वर्ज्य कर दिया जाता है और उस समय निषाद से प्रारंभ करते है- जैसे नि सा ग म प।
  4. आरोह में धैवत और निषाद अल्प है। इसलिये प और तार सा की संगति इस राग में बडी महत्वपूर्ण है।
  5. इसमें भैरव अंग प्रबल है। इसलिये इसे भैरव थाट जन्य और इसका गायन समय प्रात संधिप्रकाश माना गया है।
  6. इसे परमेल प्रवेशक राग भी कहते है।

न्यास के स्वर – ग, म और प।
समप्रकृति राग – भैरव, बिलावल और अहिर बिलावल।
 

थाट

Comments

Anand Mon, 19/04/2021 - 18:56

वादी: म
संवादी: सा
थाट: BHAIRAV
आरोह: सारे॒गमपधनिधनिसां
अवरोह: सांधनि॒पमगमरेसा
पकड़: सारे॒ गमप सांधनि॒प मगमरेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर
विशेष: इस राग में पूर्वांग में भैरव और उत्तरांग में बिलावल राग की प्रधानता है। आरोह में नि और अवरोह में नि॒ का प्रयोग होता है।

संबंधित राग परिचय

भैरव के ही मेल में, धैवत शुद्ध संयोग।
सम सम्वाद प्रात समय, बिलावल भैरव योग।।
राग-आनंद भैरव राग बिलावल थाट जन्य माना गया है। इसमें ऋषभ कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध माने जाते हैं। गायन समय प्रातःकाल है। वादी म और संवादी सा है। जाति संपूर्ण है।

आरोह– सा रे ग म प ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, म ग म रे – रे सा।
पकड़– ग म रे – रे सा,  नि ध प सा।

 

विशेषता:-

  1. यह भैरव का एक प्रकार है। नाम से ऐसा पता चलता है कि इसमें आनन्दी और भैरव का योग है, किन्तु ऐसा नहीं है। इसमें भैरव और बिलावल रागों का मेल है।
  2. इसमे भैरव का अंश होने के नाते इसका ऋषभ आंदोलित होता है और अवरोह में गंधार वक्र प्रयोग किया जाता है।
  3. कभी कभी आरोह में भी ऋषभ वर्ज्य कर दिया जाता है और उस समय निषाद से प्रारंभ करते है- जैसे नि सा ग म प।
  4. आरोह में धैवत और निषाद अल्प है। इसलिये प और तार सा की संगति इस राग में बडी महत्वपूर्ण है।
  5. इसमें भैरव अंग प्रबल है। इसलिये इसे भैरव थाट जन्य और इसका गायन समय प्रात संधिप्रकाश माना गया है।
  6. इसे परमेल प्रवेशक राग भी कहते है।

न्यास के स्वर – ग, म और प।
समप्रकृति राग – भैरव, बिलावल और अहिर बिलावल।
 

थाट

Comments

Anand Mon, 19/04/2021 - 18:56

वादी: म
संवादी: सा
थाट: BHAIRAV
आरोह: सारे॒गमपधनिधनिसां
अवरोह: सांधनि॒पमगमरेसा
पकड़: सारे॒ गमप सांधनि॒प मगमरेसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: SAMPURN-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर
विशेष: इस राग में पूर्वांग में भैरव और उत्तरांग में बिलावल राग की प्रधानता है। आरोह में नि और अवरोह में नि॒ का प्रयोग होता है।