पीलू
❤️ How to sing Tere bin soone nain hamaare ❤️ ENGLISH SUBTITLES ❤️ Raag Pilu
Song: Tere bin soone nain hamaare Lyrics: Shailendra Music: S D Burman Film: Meri surat, teri aankhen (1963) Singers: Lata Mangeshkar and Mohammad Rafi Starring: Asha Parekh, Ashok Kumar, Pradeep Kumar WEBSITE: https://inner-universe.wixsite.com/sanchitapandey E-mail: [email protected] Follow me on Instagram: https://www.instagram.com/singersanchita/ Check out my second channel, 'Inner Universe Community' :
उस्ताद विलायत खान ~ राग पीलू
Ustad Vilayat Khan Saheb plays a number of historic compositions in Raga Piloo on this Navras album a tribute to his father Ustad Inayat Khan Saheb, titled "Inayat" (NRCD 0159). One of these compositions which is presented here was composed by his father. Vilayat Khan Saheb is accompanied by Vijay Ghate on Tabla
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पीलू
प ,नि सा ग१ ; ग१ रे सा ,नि ; ,नि सा - यह राग पीलू की राग वाचक स्वर संगती है। इस राग में कोमल गंधार और मन्द्र सप्तक के शुद्ध निषाद पर विश्रांति दी जाती है, जिससे पीलू राग एकदम प्रदर्शित होता है। इस राग में कोमल निषाद के साथ धैवत शुद्ध और शुद्ध निषाद के साथ धैवत कोमल लिया जाता है।
यह चंचल प्रकृति का राग है। यह करुणा तथा भक्ति रस प्रधान राग है। इसलिये यह राग ठुमरी व भजन के लिए उपयुक्त है। इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में विशेष रूप से किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग पीलू का रूप दर्शाती हैं -
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संबंधित राग परिचय
पीलू
प ,नि सा ग१ ; ग१ रे सा ,नि ; ,नि सा - यह राग पीलू की राग वाचक स्वर संगती है। इस राग में कोमल गंधार और मन्द्र सप्तक के शुद्ध निषाद पर विश्रांति दी जाती है, जिससे पीलू राग एकदम प्रदर्शित होता है। इस राग में कोमल निषाद के साथ धैवत शुद्ध और शुद्ध निषाद के साथ धैवत कोमल लिया जाता है।
यह चंचल प्रकृति का राग है। यह करुणा तथा भक्ति रस प्रधान राग है। इसलिये यह राग ठुमरी व भजन के लिए उपयुक्त है। इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में विशेष रूप से किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग पीलू का रूप दर्शाती हैं -
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थाट
राग जाति
गायन वादन समय
Tags
राग
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राग पीलू का परिचय
राग पीलू का परिचय
वादी: ग॒
संवादी: नि
थाट: KAFI
आरोह: ऩिसागमपनि
अवरोह: सांनि॒धपग॒ रेसा
पकड़: ऩिसाग॒ ऩिसा प़ध़॒ऩिसा
रागांग: पूर्वांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: दिन का तृतीय प्रहर
विशेष: सप्तक के बारहो स्वरों का प्रयोग होता है। उभय ऋषभ गन्धार निषाद का उपयोग।