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Bairagi Todi

राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी के मध्यम की जगह कोमल गंधार लेने से राग बैरागी तोड़ी अस्तित्व में आता है। यह राग तोड़ी थाट के अंतर्गत आता है। इसका चलन राग तोडी के समान है इसलिये इसमें गंधार अति कोमल लिया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी तोडी का रूप दर्शाती हैं -

सा रे१ ग१ ; ग१ रे१ सा ; रे१ ग१ प ; रे१ ग१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ प ; नि१ प ग१ रे१ ; ग१ प नि१ सा' ; नि१ सा' रे१' सा' ; सा' नि१ प ; नि१ प ग१ रे१ ; ग१ रे१ सा ; ,नि१ सा ,प ,नि१ सा ; रे१ सा ;

थाट

राग जाति

आरोह अवरोह
सा रे१ ग१ प नि१ सा' - सा' नि१ प ग१ रे१ सा;
वादी स्वर
पंचम/षड्ज
संवादी स्वर
पंचम/षड्ज