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राग देसी का परिचय

Hans Kinkini

यह राग कम प्रचलन में है। इसके निकटतम राग हैं - राग प्रदीपकी, धनाश्री और भीमपलासी। यह राग धनाश्री अंग से गाया जाता है। म प नि१ ध प ; सा' नि१ ध प ; म प ग रे सा; - यह स्वर समुदाय धनाश्री अंग बताता है। हंस किंकिणी में कोमल गंधार (म प ग१ रे सा) लगाने से यह राग धनाश्री से अलग हो जाता है।

राग के अन्य नाम

Bhupal Todi

Raag Bhoopal Todi is symbolic of spiritual purity and hence employed for devotional compositions.

Employing Raag Todi like combinations with the Raag Bhoopali type rendering will permit proper Raag menifestation. This Raag can be sung in all the three octaves. The following combinations are illustrative

सा ,ध१ सा ; ,ध१ रे१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ रे१ सा ; रे१ रे१ ग१ रे१ ; ग१ प रे१ रे१ ग१ ; ग१ प ध१ प ; ध१ सा' ; ध१ प ; प रे१ ग१ रे१ सा ; ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा ;  

Shahana Kanada

राग शहाना कान्हड़ा में धैवत एक महत्वपूर्ण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है। अन्य न्यास स्वर पंचम है। इस राग की राग वाचक स्वर संगती है - ग१ म ध ; ध नि१ प ; नि१ ध नि१ प ; ध म प सा' ; ध नि१ प ; ग१ म रे सा

इस राग का निकटस्थ राग बहार है, जिसका न्यास स्वर मध्यम होता है (नि१ ध नि१ प म)। जबकि शहाना कान्हड़ा में न्यास स्वर पंचम है (नि१ ध नि१ प)। यह उत्तरांग प्रधान राग है, जिसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में खिलता है। यह स्वर संगतियाँ राग शहाना कान्हडा का रूप दर्शाती हैं -

Adana

Adana
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Chhadav (6/6)
Varjit Notes: ‘G’ in Aroh and ‘D’ in Avroh
Vadi: Sa
Samvadi: Pa
Vikrat Notes: G, D komal and both Nishads
Time: Night Third Pehar
Aroh: S R m P d N S*
Avroh: S* d n P m P, g m R S


राग अडाना के आरोह में गंधार वर्ज्य होने के कारण यह राग दरबारी कान्हड़ा से अलग दिखता है। राग अडाना विशेष कर मध्य और तार सप्तक में खिलता है। इस राग में गंधार और धैवत पर आंदोलन नहीं किया जाता। और इसी तरह गमक और मींड का भी उपयोग नहीं किया जाता इसीलिए इस राग की प्रकृति में चंचलता है।

Deshkar

राग देशकार, राग भूपाली के निकट का राग है, इसलिये इसे गाते समय सावधानी बरतनी चाहिये। राग देशकार में शुद्ध धैवत बहुत प्रबल है। पंचम से आलाप का अन्त करना चाहिये।

यह स्वर संगतियाँ राग देशकार का रूप दर्शाती हैं - सा ग रे सा ; ,ध ,ध सा ; सा रे ग प ध ; ध ग प ; प ध सा' ; ध प ध ग प ; ग प ध प ग रे सा ; रे ,ध ,ध सा ; ग प ध ध ; प ध प ग प ध प ध ग प ध सा' सा' ; ध प ; प ध ग प ; ग प ध प ग रे सा ; रे ,ध सा ;

राग के अन्य नाम

Bairagi Todi

राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी के मध्यम की जगह कोमल गंधार लेने से राग बैरागी तोड़ी अस्तित्व में आता है। यह राग तोड़ी थाट के अंतर्गत आता है। इसका चलन राग तोडी के समान है इसलिये इसमें गंधार अति कोमल लिया जाता है। इस राग की प्रकृति गंभीर है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी तोडी का रूप दर्शाती हैं -

Chhayanut

इस राग को राग छाया भी कहते हैं। यह छाया और नट रागों का मिश्रित रूप है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह में समान रूप से किया जाता है। परन्तु तीव्र मध्यम का प्रयोग मात्र आरोह में ही होता है और कहीं नहीं होता यथा ध म् प या प ध म् प या म् प ध प। आरोह में शुद्ध निषाद को कभी-कभी छोड़कर तार सप्तक के सा' पर इस तरह से जाते हैं जैसे - रे ग म प ; प ध प प सा'। इसी तरह तार सप्तक के सा' से पंचम पर मींड द्वारा आने से राग का वातावरण बनता है। इसके पूर्वांग में रे ग म प तथा उत्तरांग में <

राग के अन्य नाम

Chandrakauns

राग मालकौन्स के कोमल निषाद की जगह जब निषाद शुद्ध का प्रयोग होता है तब राग चन्द्रकौन्स की उत्पत्ति होती है। इस राग में शुद्ध निषाद वातावरण पर प्रबल प्रभाव डालता है। और यहि इसे राग मालकौन्स से अलग करता है। जहाँ राग मालकौन्स एक गंभीर प्रकृति का राग है वहीँ राग चन्द्रकौन्स वातावरण पर व्यग्रता व तनाव युक्त प्रभाव डालता है। यह एक उत्तरांग प्रधान है। यह स्वर संगतियाँ राग चन्द्रकौन्स का रूप दर्शाती हैं -

,नि ,ध१ ,नि सा ; ग१ म ध१ नि सा' ; म ध१ म नि ; नि सा' ग' सा' नि सा' नि ; नि ध१ ; म ध१ नि ध१ म ; म ग१ म ; म ग१ सा ,नि ; सा ग१ म ग१ सा ; ,नि ,नि सा;.

Abhogi Kanada

राग अभोगी कान्हड़ा दक्षिण भारतीय पद्धति का राग है। इसमें कान्हड़ा का अंग है, इसलिये गन्धार को अन्दोलित करते हुए ग१ म रे सा ऐसे वक्र रूप मे लिया जाता है। कुछ संगीतकार इस राग को कान्हड़ा अंग के बिना गाते हैं और उसे सिर्फ अभोगी बोलते हैं जिसमें ग म रे सा की जगह म ग रे सा लिया जाता है।

इस राग की प्रकृति गंभीर है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग अभोगी कान्हड़ा का रूप दर्शाती हैं -

सा रे ,ध सा ; रे ग१ म ; ग१ म ध सा' ; सा' ध म ; ध म ग१ रे ; ग१ म रे सा ; रे ,ध सा ; रे ग१ म रे सा ;

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