औडव - औडव
अभोगी कान्ह्डा
राग अभोगी कान्हड़ा दक्षिण भारतीय पद्धति का राग है। इसमें कान्हड़ा का अंग है, इसलिये गन्धार को अन्दोलित करते हुए ग१ म रे सा ऐसे वक्र रूप मे लिया जाता है। कुछ संगीतकार इस राग को कान्हड़ा अंग के बिना गाते हैं और उसे सिर्फ अभोगी बोलते हैं जिसमें ग म रे सा की जगह म ग रे सा लिया जाता है।
इस राग की प्रकृति गंभीर है। इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग अभोगी कान्हड़ा का रूप दर्शाती हैं -
सा रे ,ध सा ; रे ग१ म ; ग१ म ध सा' ; सा' ध म ; ध म ग१ रे ; ग१ म रे सा ; रे ,ध सा ; रे ग१ म रे सा ;
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हेमश्री
माधुर्य से परिपूर्ण राग हेमश्री की रचना आचर्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा की गई है.
यह स्वर संगतियाँ राग हेमश्री का रूप दर्शाती हैं -
सा ग१ म प म ; ग१ म प नि१ प नि नि सा' ; नि सा' ग१' नि सा' ; प नि सा' नि१ प ; नि१ प म ग१ म ; ग१ म प म ग१ सा ; ,नि ,नि सा ; ,प ,नि सा ग१ ,नि सा;.
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हंसध्वनी
यह राग कर्नाटक संगीत पद्धति से हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में सम्मिलित किया गया है। यह राग, राग शंकरा के करीब का राग है, पर इसमें धैवत वर्ज्य है। राग हंसध्वनि में नि प सा' नि ; प नि प ग ; ग प ग रे सा लिया जाता है और राग शंकरा में नि ध सा' नि ; प ध प ग ; ग प रे ग रे सा ; लिया जाता है।
यह स्वर संगतियाँ राग हंसध्वनि का रूप दर्शाती हैं - ,नि रे ग सा ; ग प ग ; रे प ग ; नि प ग रे ; ग रे ग रे सा ; ,नि ,प ,नि रे ,नि ,प सा;
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हरिकौन्स
यह स्वर संगतियाँ राग हरिकौन्स का रूप दर्शाती हैं -
सा ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ ,ध ,म् ,ग१ ; ,ग१ ,म् ,ध ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ सा ; सा ग१ म् ध नि१ सा' ; सा' नि१ ध नि१ ध म् ; ग१ म् ग१ सा ,ध ,नि१ सा ; ,नि१ सा ,ध ,नि१ ग१ सा ; सा ग१ म् ; म् म् ग१ म् ध ; म् म् ध ; ध नि१ नि१ ध ; ध म् ग१ म् ; ग१ ग१ सा ; सा' नि१ ध म् नि१ ध म् ग१ सा;
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हिन्डोल
यह राग मधुर परन्तु गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरु मुख से सीखना ही उचित है। इस राग में मध्यम तीव्र है और इसे गाने के लिए बहुत रियाज़ की आवश्यकता है। यह राग ज्यादा प्रचलन में नहीं है। यह स्वर संगतियाँ राग हिंडोल का रूप दर्शाती हैं -
सा ; ग म् ध ग म् ग ; म् ग ; ग सा ; ,ध ,ध सा ; ,नि ,म् ,ध सा ; सा ग म् ध ; ग म् ग ; म् ध सा' ; नि म् ध ; ग म् म् ग ; सा ; ,ध ,ध सा;
राग के अन्य नाम
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भूपाल तोडी
राग भूपाल तोडी, शुद्धता और पवित्रता का सूचक है। इसलिये इस राग में भक्ति रस से परिपूर्ण बन्दिशें अधिक सुनायी देतीं हैं। राग भूपाली में राग तोडी जैसे स्वर लेने पर राग भूपाल तोडी सामने आता है। यह राग तीनों सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाल तोडी का रूप दर्शाती हैं -
सा ,ध१ सा ; ,ध१ रे१ रे१ सा ; सा रे१ ग१ रे१ सा ; रे१ रे१ ग१ रे१ ; ग१ प रे१ रे१ ग१ ; ग१ प ध१ प ; ध१ सा' ; ध१ प ; प रे१ ग१ रे१ सा ; ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा ;
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भूपाली
यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।
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शंकरा
राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।
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सारंग (बृंदावनी सारंग)
राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में प रे म रे और उत्तरार्ध में नि१ प म रे यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं। रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं।
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सुन्दरकौन्स
यह राग बहुत ही प्रभावी और चित्ताकर्षक है। राग मालकौंस के कोमल धैवत की जगह जब शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है तब राग सुन्दरकौंस की उत्पत्ति होती है।
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