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છેલ્લા શ્વાસ સુધી વાંસળી વગાડવાની ઈચ્છા: પંડિત હરિપ્રસાદ ચૌરસિયા

आखिरी साँस तक बाँसुरी बजाने और इसमें शोध करने की ख्वाहिश का इजहार करते हुए प्रसिद्ध बाँसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा कि यह लोकधुन पर आधारित वाद्य है और यह शास्त्रीय संगीत का एकमात्र ऐसा वाद्ययंत्र है, जो पूरी दुनिया में बजाया जाता है।

एक जुलाई को अपने जन्मदिन के मौके पर पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने खास बातचीत में कहा कि शास्त्रीय संगीत के सरोद, सितार और तबला जैसे वाद्ययंत्र से जुड़ी शख्सियतें अली अकबर खान, पंडित रविशंकर और अल्लारक्खा खाँ अपने वाद्य से अधिक लोकप्रिय हुई हैं, जबकि बाँसुरी एकमात्र ऐसा वाद्ययंत्र है, जो बतौर वाद्ययंत्र पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुआ है।
बाँसुरी में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित पन्नालाल घोष के अलावा अन्य किसी बड़े नाम के सामने नहीं आने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने दावा किया कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में जितना लोकप्रिय होने का मौका बाँसुरी को मिला है, शायद ही किसी अन्य वाद्य को इस तरह का मौका मिला हो।

72 बसंत पूरे कर चुके बाँसुरी वादक ने कहा कि बाँसुरी पूरी दुनिया में लोकप्रिय वाद्य यंत्र है और दुनिया के जिन देशों में बाँस नहीं मिलता, वहाँ लोग किसी अन्य वस्तु से बाँसुरी बनाते हैं। यह ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसे लड़के-लड़कियाँ सभी बजाते हैं।
एक जुलाई 1938 को संगम नगरी इलाहाबाद में जन्मे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के पिता नामी पहलवान थे और उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा भी पहलवान बने, लेकिन पंडित चौरसिया को शास्त्रीय संगीत की ऐसी लगन लगी कि वे ‘संगीत के उस्ताद’ बन गए।

बाँसुरी में नए प्रयोग के बारे में पूछे जाने पर पंडितजी ने काफी विनम्रता से कहा कि बाँसुरी आध्यात्मिक वाद्ययंत्र है और इसके महारथी इतना कुछ कर गए हैं कि वे केवल उसे निभा रहे हैं। हालाँकि उन्होंने माना कि उनके बाँसुरी वादन में कई दफा पहाड़ी धुन की झलक मिलती है।
उन्होंने कहा कि यह वाद्ययंत्र सुदूर गाँव का और मेहनतकश इन्सान का वाद्ययंत्र है, जो लोकधुन पर आधारित है। उनकी कोशिश है कि लोकधुन को अपने बाँसुरी वादन में शामिल किया जाए।

कुछ समय बाद ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जाने वाले पंडितजी से जब वहाँ के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह अछूता और शांत देश है। वे जब भी वहाँ गए हैं, वहाँ के सुसंस्कृत और सभ्य लोगों से उन्हें बेहद प्यार मिला है। उन्हें लगता है कि ऑस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर हमले रुक जाएँगे और लोग इस खूबसूरत देश के बारे में अधिक जानेंगे।
देश-विदेश में कई सम्मानों से नवाजे गए पंडित चौरसिया ने नई पीढ़ी के रुझान के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा कि वह चाहते हैं कि देश विदेश में बाँसुरी बजाने वाले बढ़े और इसके रसिक श्रोताओं की संख्या में भी इजाफा हो। 

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