জানিয়ে মাশহুর শাস্ত্রীয় নৃত্য সম্পর্কে.

जानिए मशहूर शास्त्रीय नृत्यों के बारे में. अगर आप इन्हें याद रखेंगे तो प्रतियोगी परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल कर सकते हैं.

1. मोहिनी अट्टम किस राज्य का अर्ध शास्त्रीय नृत्य है?
(a) तमिलनाडु (b) केरल (c) आंध्र प्रदेश (d) ओडिशा

2. भरतनाट्यम का संबंध किस राज्य से है?
(a) राजस्थान (b) पश्चिम बंगाल (c) तमिलनाडु (d) केरल

3. कचिपुड़ी किस राज्य की स्वदेशी नृत्य शैली है?
(a) आंध्र प्रदेश (b) ओडिशा (c) तमिलनाडु (d) मणिपुर

4. कुटियाट्टम किस राज्य का शास्त्रीय रंग मंच का रूप है?
(a) तमिलनाडु (b) मणिपुर (c) पश्चिम बंगाल (d) केरल

আন্তর্জাতিক নৃত্য দিবস 2020

International Dance Day was created by the Dance Committee of the International Theatre Institute, partner for the performing arts of United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization (UNESCO). It was created in 1982.

 

Significance of International Dance Day

This day is celebrated to give value to this art. International Dance Day is wake-up-call for governments, politicians, and institutions, society to realize its potential for economic growth.

ভারতীয় সঙ্গীতে বাদ্যের গুরুত্ব

संगीत   में   वाद्यों   का   विशेष   महत्त्व   है।   इसके   बिना   गायन ,  वादन ,  नर्तन   का   सौन्दर्य   अधखिली   कली   के   सदृश्य   होता   हे।   गायन ,  वादन ,  नृत्य ,  वाद्यों   की   संगति   पाकर   पूर्ण   विकसित   सुमन   की   भांति   खिल   उठते   हैं।   केवल   गायन ,  वादन   तथा   नृत्य   में   ही   नहीं   बल्कि   नाटकों   में   भी   वाद्यों   का   विशेष   महत्त्व   होता   है।   गायन   की   भांति   वादन   भी   नाट्य   क्षेत्र   में   आवश्यक   है।   भरत   मुनि   ने   कहा   है।

‘‘ वाद्येशु   यत्नः   प्रथमं   कार्यः   वदन्ति   शैया   चं   नाट्यम   वदन्ति   वाद्यम्।

সাত সুরের ভারতীয় বিশ্ব

सृष्टि की उत्पत्ति की प्रक्रिया नाद के साथ हुई। जब प्रथम महास्फोट (बिग बैंग) हुआ, तब आदि नाद उत्पन्न हुआ। उस मूल ध्वनि को जिसका प्रतीक ‘ॐ‘ है, नादव्रह्म कहा जाता है। पांतजलि योगसूत्र में पातंजलि मुनि ने इसका वर्णन ‘तस्य वाचक प्रणव:‘ की अभिव्यक्ति ॐ के रूप में है, ऐसा कहा है। माण्डूक्योपनिषद्‌ में कहा है-

ओमित्येतदक्षरमिदम्‌ सर्वं तस्योपव्याख्यानं
भूतं भवद्भविष्यदिपि सर्वमोड्‌◌ंकार एवं
यच्यान्यत्‌ त्रिकालातीतं तदप्योङ्कार एव॥
माण्डूक्योपनिषद्‌-१॥

শব্দ বিজ্ঞানের উপর ভিত্তি করে ভারতীয় লিপি

१८वीं -१९वीं सदी के अनेक पाश्चात्य संशोधकों ने यह भ्रमपूर्ण धारणा फैलाने का प्रयत्न किया कि भारत के प्राचीन ऋषि लेखन कला से अनभिज्ञ थे तथा ईसा से ३००-४०० वर्ष पूर्व भारत में विकसित व्राह्मी लिपि का मूल भारत से बाहर था। इस संदर्भ में डा. ओरफ्र्ीड व म्युएलर ने प्रतिपादित किया कि भारत को लेखन विद्या ग्रीकों से मिली। सर विलियम जोन्स ने कहा कि भारतीय व्राह्मी लिपि सेमेटिक लिपि से उत्पन्न हुई। प्रो. बेवर ने यह तथ्य स्थापित करने का प्रयत्न किया कि व्राह्मी का मूल फोनेशियन लिपि है। डा.

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय