गरबा नृत्य
गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है। आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है।
आधुनिक गरबा/ डांडिया रास से प्रभावीत एक नृत्य है जिसे परंपरागत पुरषों तथा महिलाओं द्वारा किया जाता है। इन दोनों नृत्यों के विलय से आज जो उच्च उर्जा़ नृत्य का गठन हुआ है, उसे हम आज देख रहे है। आम तौर पर पुरुष और महिलाये रंगीन वेश-भूषा पहने हुए गरबा और डांडिया का प्रदर्शन करते हैं। लडकियाँ चनिया-चोली पहनती हैं और साथ मे विविध प्रकार के आभूषण पहनती हैं, तथा लडके गुजराती केडिया पहन कर सिर पर पगडी बांधते हैं। प्राचीन काल मे लोग गरबा करते समय सिर्फ दो ताली बजाते थे, लेकिन आज आधुनिक गरबा में नई तरह की शैलियों का उपयोग होता है, जिसमें नृत्यकार दो ताली, छः ताली, आठ ताली, दस ताली, बारह ताली, सोलह तालियाँ बजा कर खेलते हैं। गरबा नृत्य सिर्फ नवरात्री के त्यौहार में ही नहीं किया जाता है बल्कि शादी के महोत्सव और अन्य खुशी के अवसरों पर भी किया जाता है।
💃🌻 गरबा नृत्य 🌻💃
💃गुजरात राज्य का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है, जो गीत, नृत्य और नाटक की समृद्ध परम्परा का निरुपण करता है।
💃यह मिट्टी के मटके, जिसे गरबो कहते हैं, को पानी से भर कर इसके चारों ओर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है।
💃मटके के अंदर एक सुपारी और चाँदी का सिक्का रखा जाता है, जिसे कुम्भ कहते हैं।
💃 इसके ऊपर एक नारियल रखा जाता है।
💃नृत्य करने वाली महिलाएँ मटके के चारों ओर गोल घूमती हैं और एक गायक तथा ढोलक या तबला बजाने वाला व्यक्ति संगीत देता है।
💃प्रतिभागी एक निश्चित ताल पर तालियाँ बजाते हैं।
💃गरबा नृत्य गुजराती महिलाओं द्वारा किया जाने वाला गोलाकार नृत्य रूप है और यह नृत्य नवरात्रि, शरद पूर्णिमा, बसंत पंचमी, होली और अन्य उत्सवों में किया जाता है।
💃’गरबा’ का जन्म एक दीपक के अनुसार किया गया है, जिसे गर्भदीप कहते हैं, जिसका अर्थ है मटके के अंदर रखा हुआ दीपक।
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