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सम्पूर्ण - सम्पूर्ण

चारुकेशी

राग चारुकेशी अपेक्षाकृत नया राग है जिसे दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति से लिया गया है। यह बहुत ही मधुर राग है जिसे तीनों सप्तकों में बिना किसी रोक टोक के गाया जा सकता है। धैवत और निषाद कोमल होने के कारण यह राग उत्तरांग मे अनूठी सुन्दरता दर्शाता है।

गौड मल्हार

यह बहुत ही मधुर, चित्ताकर्षक और प्रभावशाली राग है परन्तु गाने में कठिन है। यह राग बहुत प्रचलन में है। इस राग को राग गौड के नाम से भी जाना जाता हैं। इस राग में गौड़ अंग, शुद्ध मल्हार अंग और बिलावल अंग का मिश्रण दिखाई देता है।

राग के अन्य नाम

कीरवाणी

यह कर्नाटक संगीत से हिन्दुस्तानी संगीत में लिया हुआ राग है। इस राग का वाद्य संगीत में ज्यादा प्रयोग किया जाता है। यह चन्चल प्रक्रुति का राग होने कि वजह से इसमे ठुमरी जैसी बंदिशें ज्यादा प्रचिलित हैं। फिल्म संगीत में भी इस राग का बहुत उपयोग किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग कीरवाणी का रूप दर्शाती हैं -

सा रे ग१ म ध१ प ; ध१ प म ग१ रे ग१ म प ; प ध१ नि सा' नि ध१ प ; प ध१ नि सा' ; प ध१ सा' रे' ; सा' रे' ग१' रे' सा' नि ध१ प ; प ध१ नि रे' नि ध१ ; नि ध१ म ; ध१ म ग१ रे१; ग१ प म ग१ रे सा ,नि ; ग१ रे सा ,नि ,ध१ ,नि रे सा ;

कामोद

राग कामोद बहुत ही मधुर और प्रचलित राग है। इस राग में मल्हार अंग, हमीर अंग और कल्याण अंग की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है साथ ही केदार और छायानट की झलक भी दिखाई देती है। इसलिये यह राग गाने में कठिन है। ग म प ग म रे सा - यह कामोद अंग कहलाता है। इस राग में रिषभ-पंचम की संगती के साथ-साथ ग म प ग म रे सा यह स्वर समूह राग वाचक है। यह स्वर संगतियाँ राग कामोद का रूप दर्शाती हैं -

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