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संगीत रस सुरस

संगीत रस सुरस

भारतीय संगीत अलौकिक हैं,भारतीय शास्त्रीय संगीत पध्दति में राग गायन की परम्परा हैं, जो विश्व की किसी भीअन्य संगीत पध्दति में नही हैं,राग शब्द रंज धातु से उत्पन्न हुआ हैं.मेदिनी कोष में कहा गया हैं-"रंजनो रागजनने ,रंजनं रक्तचन्दने" अर्थात - रंजन शब्द ,रंग उत्पन्न करने और लालचंदन के अर्थ में पर्युकत होता हैं.इस प्रकार राग शब्द के अभीश्रेयार्थ -"रंग और रंगे जाने की प्रक्रिया हैं,"राग वह जो अपने रंग में रंग दे.ऐसा भी कहा गया हैं "रंजको जन्चित्तानाम"अर्थात जो जनों के ,लोगो के श्रोताओ के चित्त का रंजन करे वह राग हैं,साथ ही राग का गायन,वादन, गायन -वादन को अधिक व्यवस्थित व् क्रमबध्ध भी बनाता हैं,गायन वादन को एक मर्यादा में भी बाँधता हैं।
गंभीर आलापचारी,सुन्दर विस्तार,साहित्यिक रूप से श्रेष्ठ बंदिश,लय,ताल व छंदों से युक्त गत,व् गायन वादन कीअन्य क्रियाए गुनी कलाकार के गायन व् वादन में स्वत: समाहित होती हैं.भारतीय शास्त्रीय संगीत में नौ रसो केराग हैं,साथ ही ऋतु विशेष के भी कई राग हैं जैसे वसंत,मल्हार के प्रकार आदि.मजे की बात यह हैं की सुबह सेलेकर रात तक के लिए और पुरी रात के लिए भी (अलग अलग प्रहर के )अलग अलग राग हैं,कहते हैं-"यथा कालेसमारब्धम गीतं भवति रंजकम" ।

मेरे सामने प्रश्न यह हैं की राग सम्पदा से युक्त समृध्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत को बहुत ही कम लोग ही सुनना क्युपसंद करते हैं,क्या ये संगीत इतना क्लिष्ट हैं की वह साधारण जनता की समझ के परे की वस्तु बन गया हैं?इतनाजटिल हैं की वह उन्हें रस प्रद संगीत ही नही लगता?या यह आजायबघर में सजाये जाने के लिए छोड़ दिया गयाहैं,रस प्रद भावपूर्ण शुद्ध -शुध्ध्तम शास्त्रीय संगीत में इसी क्या कमी रह गई हैं की लोग उसे सुनना ही नही चाहते,इन गिने कुछ वरिष्ठ कलाकारों के नाम छोड़ दे तो जाने कितने ही इसे संगीतकर हैं जो इस धरोहर को बचने के लिए अकेले ही जूझ रहे हैं।

मैंने इस सम्बन्ध में कई युवा व् वृध्द जनों से बात की,जानना चाहा की क्यु उन्होंने अन्य सभी की तरह इस औरध्यान देन उचित नही समझा,युवा वर्ग की और से पहला उत्तर मिलाजिसे सुनकर मुझे हर बार उतनी ही हँसी आईवह था-"क्या रखा क्या हैं इस अ आ उ इ में?तानपुरा उठाओ और चिल्लाने लगो अ आआआआआअ दूसरा उत्तर थाकुछ समझ में तो आता नही हैं क्या कह रहे हैं,क्या सुना रहेहैं,और सबसे बड़ी बात हम वही सुनना चाहते हैं जो ट्रेन्ड़में चल रहा हैं,हम जिसे जोर जोर से सुन सके,साथ गा सके,उस पर नाच सके,पार्टी में लगा सके .........."
बड़े -बुजुर्ग व्यक्तियों ने एक ही बात कही समझ नही आता!

सागर में उठने वाली लहरे कितनी गति से किनारे तक आती हैं,क्या हम साधारण लोगो में से हर एक को इसकापता हैं?बारिश की बुँदे गोल होती हैं या चपटी?सूरज की सुंदर सुनहली किरणे कितने वर्षो से चलकर हमारे पास आरही हैं,यह हर उस किरण के बारे में पता होता हैं जिसे हम आज देख रहे हैं,अपने हाथो से उसे छूने की कोशिश कररहे हैं,दूर से हवा के साथ किसी फुल की खुशबू बहती चली आती हैं,क्या हम उससे कहते हैं की बताओ तुम किसफुल की खुशबू हो,यह समझ आना ही चाहिए तभी हम तुम्हे सुन्घेंगे?हमारे देश में कई जातिया,समुदाय हैं सभी मेंपकाया जाने वाला भोजन अलग अलग हैं,साथ ही कई देशो के भोजन का स्वाद हम रोजमर्रा की जिंदगी में लेतेहैं,तब क्या हमें उन सारे भोजन की निर्माण प्रक्रिया के बारे में पता होता हैं?कितने ही लोगो को गाड़ी कार चलानानही आता,हम में से कितने लोगो को रेल,विमान चलाना आता हैं?क्या हम उनमे बैठे से चुकते हैं।

हम उन सागर की लहरों को देखने का उनमे खेलने का आनंद लेते हैं,बारिश में भीगते हैं,सूरज की रोशनी के लिए न जाने कितने धन्यवाद उसे देते हैं,हवा के साथ आती फूलो की खुशबू सूंघ खुश हो जाते हैं,उसे बयार कहते हैं,हर तरह का भोजन खाते हैं बहुत सा पसंद भी करते हैं,क्युकी हम इन सबका आनंद लेना जानते हैं,आनंद लेना चाहते हैं।

फ़िर राग से शोभायमान शास्त्रीय संगीत के साथ यह अन्याय क्यु?जिसे रंजको जनचित्तानाम कहा गया हैं वहीरागदरी संगीत इतना अरंजक, अप्रभावी क्यु लग रहा हैं?क्युकी शास्त्रीय संगीत के बारे में बात बिल्कुल उलटी होरही हैं,हम इसका आनंद लेना नही जानते क्युकी लेना ही नही चाहते,आ आ उ उ कह कर इसे पवित्र विधा काअपमान भर कर देते हैं।

हर चीज़ इन्सान को जनमत: नही आती,उठाना,बैठना,चलना दौड़ना,खाना पीना भी सीखना पड़ता हैं,और हर बातसिखने के लिए जानने के लिए सीखना पड़ता हैं लेना,और जब आप दिलचस्पी लेते हैं तो सिख भी जाते हैं समझ भी जाते हैं.भारतीय शास्त्रीय संगीत नही इतना जटिल हैं न इतना रुखा की कोई अघ्यान वश उसका आनंद भी न उठा सके,उससे प्रेम भी न कर सके।

इसलिए यह कहने वालो से कि"समझ ही नही आता",मेरा अनुरोध हैं कि जरा सुने तो,उससे जुड़े तो, कभी जब कुछनया सुनने का मन हो तो किसी कलाकार का कोई राग सुन कर तो देखे,कभी उस के साथ गुनगुना कर तो देखे,थकेहारे जब घर लौटे,आँखे मूंद कर कुछ देर यह संगीत सुन कर देखे फ़िर कहे आनंद नही आता, समझ नही आता,आपजब सुनेगे,तभी तो समझेंगे,और आपके समझने से पहले ही यह आपको आत्मानंद देगा,अपना बना लेगा.इसलिएकहा गया हैं न कि"संगीत रस सुरस "और भारतीय होने के नाते भारत की सुंदर परम्पराओ को पोषित करने कीसहेजने की हम भारतीयों की ही जिम्मेदारी हैं न!सिर्फ़ पार्टी में नाचना,उलुल जुलूल गानों पर थिरकना हमारीकर्त्वय्निष्ठा का परिचायक भी तो नही हैं न,इसलिए आगे बड़े शास्त्रीय संगीत को सुने समझे सीखे और गाये