जोगिया
जोगिया
इस राग को जोगी नाम से भी जाना जाता है। राग भैरव के सामन ही इसमें रिषभ और धैवत कोमल लगते हैं, पर उन्हे लगाने का ढंग अलग होता है। राग भैरव में रिषभ और धैवत को आंदोलित किया जाता है वैसा आंदोलन जोगिया में कदापि नहीं किया जाता। अवरोह में निषाद का प्रयोग अल्प होता है और उसे सा से ध पर जाते हुए कण के साथ में प्रयोग करते हैं। कभी कभी अवरोह में कोमल निषाद को भी कोमल धैवत के साथ कण के रूप में लगाते हैं जिससे राग और भी सुहवना लगता है। इस राग में रे१-म और ध१-म का प्रयोग मींड के साथ अधिक किया जाता है।
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संबंधित राग परिचय
जोगिया
इस राग को जोगी नाम से भी जाना जाता है। राग भैरव के सामन ही इसमें रिषभ और धैवत कोमल लगते हैं, पर उन्हे लगाने का ढंग अलग होता है। राग भैरव में रिषभ और धैवत को आंदोलित किया जाता है वैसा आंदोलन जोगिया में कदापि नहीं किया जाता। अवरोह में निषाद का प्रयोग अल्प होता है और उसे सा से ध पर जाते हुए कण के साथ में प्रयोग करते हैं। कभी कभी अवरोह में कोमल निषाद को भी कोमल धैवत के साथ कण के रूप में लगाते हैं जिससे राग और भी सुहवना लगता है। इस राग में रे१-म और ध१-म का प्रयोग मींड के साथ अधिक किया जाता है।
मध्यम को विस्तार के साथ बार बार लिया जाता है। राग का विस्तार मध्य और तार सप्तक में आकर्षक दिखता है। कोमल रिषभ और कोमल धैवत करुण रस के परिपोषक हैं। इस राग में वैराग्य और भक्ति की भावना उमडती है। यह एक गंभीर प्रकृति का राग है। यह स्वर संगतियाँ राग जोगिया का रूप दर्शाती हैं -
सा रे१ सा ,ध१ सा ; सा रे१ म ; म प ; प म रे१ सा ; रे१ सा ,ध१ सा ; रे१ म प ; म प ध१ सा' ; सा' (नि)ध१ प ; म प ध१ (नि१)ध१ म ; म रे१ सा ; ,ध१ सा ;
थाट
राग जाति
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राग
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राग-जोगिया
आरोह :- सा रे म प ध सां।
अवरोह:- सां नि ध प, ध म रे सा।
थाट – भैरव थाट
जाति – ओडव – षाडव
गायन समय – प्रातःकाल का प्रथम प्रहर है
वादी – संवादी – म – सा
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राग-जोगिया की विशेषता
राग जोगिया को भैरव थाट जन्य माना गया है। इसके आरोह में ग नि वर्ज्य है और अवरोह में ग वर्ज्य है। अतः इसकी जाति ओडव – षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय प्रातःकाल संधिप्रकाश है। कुछ विद्वान इसमें तार सा वादी और मध्यम संवादी मानते हैं। किन्तु दोनों दृष्टि से यह उत्तरांग प्रधान राग है।