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चाँदनी केदार

चाँदनी केदार

इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई हैं। दोनों मध्यम, दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। आरोह में ऋषभ, गंधार वर्जित तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते है, इसलिये इसकी जाति ओडव- सम्पूर्ण है। वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। चलन वक्र है।

संबंधित राग परिचय

चाँदनी केदार

इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई हैं। दोनों मध्यम, दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। आरोह में ऋषभ, गंधार वर्जित तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते है, इसलिये इसकी जाति ओडव- सम्पूर्ण है। वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। चलन वक्र है।

Comments

Pooja Tue, 20/04/2021 - 21:16

केदार के अन्य प्रकारों में से यह एक प्रकार है। यह प्रकार प्रचलित केदार से बहुत मिलता-जुलता है। प्रचलित केदार में कोमल निषाद और तीव्र मध्यम का अंश बढा देने से चाँदनी केदार हो जाता है, ऐसा विद्वानों का मत है। प्रचलित केदार में कोमल निषाद विवादी स्वर के नाते प्रयोग किया जाता है और चाँदनी केदार में यह अनुवादी स्वर है। राग केदार के समान इसमें भी मध्यम पर गंधार का कण लगाते है।