उत्तर प्रदेश
कहरही (कहरुआ नृत्य)
'कंहारों' का पुस्तैनी पेशा पालकी ढोना था। बाद में ये मिटटी बर्तन भी बनाने लगे। इस काम में उल्लास के लिए इन्होने नाचना -गाना भी अनिवार्य समझा। अतः चाक की गति के संग-संग गीत भी गुनगुनाने लगे। 'संघाती' घड़े पर ताल देने लगे और ठुमकने भी लगे। ओरी-ओरियानी खड़ी होकर महिलाएं गीत दुहराने लगीं। इस प्रकार नृत्य, गीत, वाद्य का समवेत समन्वय हो गया और उससे एक विधा का जन्म हो गया जिसे 'कंहरही' कहते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जहाँ इनकी बस्ती है, ये लोग अपने आनंद और आल्हाद के लिए, श्रम -परिहार के लिए, मधुर धुन, लय, ताल में नाचने-गाने लगे।
- Read more about कहरही (कहरुआ नृत्य)
- Log in to post comments
- 55 views
ढिमरया नृत्य
ढिमरया नृत्य बुंदेलखण्ड का लोक नृत्य है। इस नृत्य में स्त्री तथा पुरुष दोनों समान रूप से भाग लेते हैं। विवाह आदि के शुभ अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। बुंदेलखंड में ढीमरों के नृत्य अपना विशेष स्थान रखते हैं। 'ढिमरया नृत्य' शादियों में नाचा जाता है।
- Read more about ढिमरया नृत्य
- Log in to post comments
- 41 views
चुरकुला नृत्य
होली ब्रज क्षेत्र का एक विशेष पर्व है, जिसमें फागुन का उल्लास गायन के रुप में पूरे ब्रज में एक नई उमंग पैदा कर देता है। इस अवसर पर पूरे ब्रज में अनेक स्थलों पर नृत्य-गायन के विभिन्न समारोह होते हैं परन्तु इन नृत्यों में चुरकुला नृत्य सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। यह नृत्य ऊमरु, खेमरी, सोंख, मुखराई आदि कुछ खास गाँवों में होता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से दर्शक उमड़ पड़ते हैं। इस नृत्य के लिए हर गाँवों में होली के आस-पास की तिथि परम्परा से निश्चित हैं, जिनमें गाँव के किसी विशाल प्रांगण में यह नृत्य महिलाओं द्वारा किया जाता है। कोई एक महिला अपने मस्तक पर लोहे अथवा काष्ठ का बना एक लंबा, गो
- Read more about चुरकुला नृत्य
- Log in to post comments
- 91 views
चरकुला नृत्य
जनपद की इस नृत्य कला ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचायी है पूर्व में होली या उसके दूसरे दिन रात्रि के समय गांवों में स्त्री या पुरुष स्त्री वेश धारण कर सिर पर मिट्टी के सात घड़े तथा उसके ऊपर जलता हुआ दीपक रखकर अनवरत रूप से चरकुला नृत्य करता था। गांव के सभी पुरुष नगाड़ों, ढप, ढोल, वादन के साथ रसिया गायन करते थे।
- Read more about चरकुला नृत्य
- Log in to post comments
- 467 views
डोमकच नृत्य
पूर्वांचल में मुख्य रूप से सोनभद्र जनपद के सुदूर वनों-पहाड़ों के मध्य 'घसिया' जाति के आदिवासी निवास करते हैं। ये कैमूर की गुफाओं में न जाने कब से निवासित हैं तथा मादल, ढोल, नगाड़ा, बांसुरी, निशान, शहनाई आदि वाद्य बनाकर बेचते और उसे बजाकर नाचते - गाते भी हैं। पहले ये राजाओं के यहाँ घोड़ों की 'सईसी' करते थे। इन्होने एक बार अस्पृश्य मानी जाने वाली डोम जाती का स्पर्श करके नाच - गाकर खुशियां मनाई तभी से विवाह, गवना, अन्नप्राशन, मुंडन अथवा होली, दशहरा, दीपावली आदि अवसरों पर पूरे परिवार के साथ नाचने की परंपरा इनमें चल पड़ीं। ये लोग नाचते समय कई कलाओं का प्रदर्शन भी करते हैं।
- Read more about डोमकच नृत्य
- Log in to post comments
- 441 views
विदेशिया नृत्य
यह उत्तर प्रदेश एवं बिहार राज्यों के भोजपुरी भाषी क्षेत्र का एक प्रमुख एवं ग्रामीण जनता में सर्वाधिक प्रचलित लोक-नृत्य है। विदेशिया अथवा बिदेशिया नृत्य भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख लोक नृत्य शैलियों में से एक नृत्य है।
- Read more about विदेशिया नृत्य
- Log in to post comments
- 1196 views
अहीरों का नाच
अहीरों का नाच (फरुवाही): अहीर स्वयं में एक संस्कृति है। यह वीरों की संस्कृति है। लोरिकी, बिरहा, गड़थैया, कुर्री-फुर्री-कलैया, मानो जैसे कि वे पेट से ही सीख कर आते हैं। परन्तु ऐसा माना जाता है कि अहीर 'उज़बक' होते है और उनकी पत्नियां बुद्धिमती होती हैं। पुरुष डोर, चौरासी, शहनाई, घुँघरू पहनकर हाथ में धुधुकी लेकर धोती कुरता पहनकर सिर पर पगड़ी बांधकर उछाल कूद करते हुए गीत की पंक्तियाँ टेरते हैं। ये बीच- बीच में 'हा- हा', 'हू-हू' की आवाज़ करते हैं। कलैया मरते हैं। नाचते समय ये 'लोरकी गाथा' की पंक्तियाँ अथवा 'बिरहा' की पंक्तियाँ दुहराते हैं।
- Read more about अहीरों का नाच
- Log in to post comments
- 217 views
जनजातीय इन्द्रवासी नृत्य
'धरकार' एक ऐसी जनजाति है जो मुख्य रूप से वाद्य यंत्र बनाकर अथवा डलिया - सूप बनाकर अपनी जीविका चलाती है और जब वाद्य यंत्र बनाती ही है तो नाचना गाना भी होता ही है। पूर्वांचल के सोनभद्र सहित अन्य जनपदों में बांस-वनों के समीप निवास करने वाली यह जनजाति निशान (सिंहा), डफला, शहनाई, बांसुरी, ढोल, मादल बना कर और बजाकर, झूम कर जाने कब से नाचती -गाती आ रही हैं। विवाह, गवना, मेले - ठेलों में या फिर बाजारों में भी होली - दीपावली, दशहरा, करमा आदि पर्वों पर ये लोग इन्द्रवासी नृत्य करके सबको मुग्ध कर देते हैं।
- Read more about जनजातीय इन्द्रवासी नृत्य
- Log in to post comments
- 35 views
धोबी-नृत्य
धोबी-नृत्य: धोबी जाति द्वारा मृदंग, रणसिंगा, झांझ, डेढ़ताल, घुँघरू, घंटी बजाकर नाचा जाने वाला यह नृत्य जिस उत्सव में नहीं होता, उस उत्सव को अधूरा माना जाता है। . सर पर पगड़ी, कमर में फेंटा, पावों में घुँघरू, हातों में करताल के साथ कलाकारों के बीच काठ का सजा घोडा ठुमुक- ठुमुक नाचने लगता है तो गायक - नर्तक भी उसी के साथ झूम उठता है। .टेरी, गीत, चुटकुले के रंग, साज के संग यह एक अनोखा नृत्य है।
- Read more about धोबी-नृत्य
- Log in to post comments
- 138 views
शैला नृत्य
शैला, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में आदिवासियों के मध्य एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में पूरे गांव के युवक सम्मिलित हो सकते हैं। इसकी तैयारी भी 'करमा' की तरह एक माह पूर्व से ही आरम्भ जाती है। युवक आदिवासी पोषक में मोरपंख कमर में बांध कर वृत्त या अर्धवृत्त बनाकर नाचते हैं। हर युवक के हाथ में दो-दो फुट का डंडा होता है जिसे लेकर वे नाचते हुए ही आगे -पीछे होते रहते हैं। घुँघरू बांधकर मादल लेकर बजाते हुए बीच-बीच में 'कू-कू ' या 'हूं-हूं' की आवाज़ करते हैं जिसे 'छेरवा' कहा जाता है। होली, दीपावली, दशहरा, अनंत चतुर्दशी, शिवरात्रि के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।
- Read more about शैला नृत्य
- Log in to post comments
- 41 views