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मेवाती घराना

मेवाती घराना हिंदुस्तानी संगीत के प्रसिद्ध घरानों में से एक है। यह अपनी शैली भाव प्रधान नोट्स के माध्यम से राग का मूड के विकास को महत्व देता है। यह पाठ के अर्थ को समान महत्व देता है।

संस्थापक

घग्गे नज़ीर खान

प्रतिपादक

पंडित जसराज

मोती राम

मणिराम

संजीव अभ्यंकर

जानिए उस मेवाती घराने के बारे में, जिससे ताल्लुक रखते थे पंडित जसराज

मेवाती घराने (Mewati gharana) से जुड़ने के बाद पंडित जसराज (Pandit Jasraj) ने जुगलबंदी का एक नया रूप बनाया, जिसे जसरंगी कहते हैं.

शास्त्रीय संगीत के महान गायक पंडित जसराज का सोमवार को अमेरिका में निधन (Music legend Pandit Jasraj passes away in America) हो गया. लगभग 8 दशक तक शास्त्रीय संगीत की दुनिया पर राज कर चुके पंडित जसराज मेवाती घराने से जुड़े हुए थे. ये घराना अपने-आप में हिंदुस्तानी संगीत का स्कूल कहलाता है. गायन की खयाल शैली के लिए ख्यात इस घराने की परंपरा में पंडित जसराज से कई दूसरी शैलियां भी मिलाई थीं. जानिए, क्या है मेवाती घराना, जिससे संगीत जगत का सबसे बड़ा सितारा जुड़ा रहा.

क्या था पंडित जसराज का घराना
मेवाती घराना, जिसे जयपुर मेवाती घराना भी कहते हैं, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का अहम घराना रहा. इसकी नींव उस्ताद घग्गे नाजिर खां और उनके बड़े भाई उस्ताद वाहिद खां ने रखी थी. दोनों ही संस्थापक अलग-अलग विद्याओं पर पकड़ रखते थे. छोटे उस्ताद जहां गायन के महारथी थे तो बड़े भाई वीणा वादन करते थे. उन्नीसवीं सदी में मेवात (हरियाणा का इलाका) से इसकी शुरुआत हुई, इसी वजह से इसे मेवाती घराना कहते हैं. बता दें कि इस घराने का राजस्थान के मेवाड़ से कोई संबंध नहीं है. हालांकि बाद में घरेलू वजहों से घराने के संस्थापकों के परिवार भोपाल में बस गए, जबकि कुछ जयपुर चले गए. यही वजह है कि मेवात घराने के लोग देश के इन सभी क्षेत्रों में होते हैं.

क्या हैं मेवाती घराने की खासियत
जल्दी ही अपनी कई खूबियों के कारण मेवात घराना ग्वालियर और कव्वाल बच्चों की टक्कर का माना जाने लगा. गाने की इसकी अपनी शैली है, जिसमें भाव और बंदिश को प्रधानता दी जाती है. इसमें तिहाई को भी तरजीह मिलती है यानी किस तरह से गाने का अंत किया जाए. कुछ तरीकों में ये पटियाला और टप्पा गायकी से मिलती-जुलती है लेकिन ये ग्वालियर गायकी से ज्यादा करीब है. एक से दूसरे नोट पर जाते हुए ये अपनी नजाकत और मिठास के लिए जानी जाती है.

कई दूसरे ख्यात कलाकार भी इससे संबंधित
वैसे इस घराने को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पंडित जसराज के जुड़ने के बाद मिली. उनके अलावा मोतीराम, मणिराम व संजीव अभ्यंकर इस घराने के जाने माने कलाकार हैं. पंडित जसराज और मणिराम ने इस घराने को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. ये दोनों ही कलाकार अपने घराने को शुद्ध वाणी, शुद्ध मुद्रा यानी एक्सप्रेशन और शुद्ध सुर से जुड़ा हुआ बताते रहे. बता दें कि मणिराम पंडित जसराज के बड़े भाई और उनके गुरु भी थे.

किये गए कई प्रयोग
पंडित जसराज ने अपने घराने की शुद्धता को कायम रखते हुए कई प्रयोग भी किये. जैसे उन्होंने खयाल गायन में कुछ लचीलेपन के साथ ठुमरी, हल्की शैलियों के तत्वों को जोड़ा. साथ ही उन्होंने जुलगबंदी का एक नया रूप बनाया, जिसे जसरंगी कहते हैं. इसमें एक महिला और पुरुष गायक होते हैं जो एक साथ ही अलग-अलग राग गाते होते हैं.

उन्हें कई प्रकार के दुर्लभ रागों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाना जाता है. साथ ही साथ इसी घराने के तहत अर्ध-शास्त्रीय शैली भी तैयार की गई. इनमें से एक है हवेली संगीत, जिसके तहत मंदिरों में अर्ध-शास्त्रीय गायन और वादन किया जाता है.

क्या होता है घराना
जब संगीत के घरानों की बात निकल पड़ी है तो ये भी जानना जरूरी है कि आखिर संगीत में घराने क्या होते हैं और इनका क्या मकसद है. घराना एक प्रणाली है जो संगीतकार या नृत्य करनेवाले उस्तादों की वंशावली को दर्शाता है. इनके जरिए कला की शैली का पता चलता है. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि घराना एक विचारधारा है जिसमें अपने तरीके से संगीत को दिखाया गया है. हर घराने की अपनी-अपनी शैली होती है, और इसी से उसकी पहचान होती है.

खयाल गायकी के कुछ घरानों में ग्वालियर घराना, आगरा घराना, किराना घराना, भेंदी बाजार घराना, जयपुर अतरौली घराना, पटियाला घराना, रामपुर सहसवान घराना, इंदौर घराना, मेवाती घराना और शाम चौरसिया घराना शामिल हैं. वैसे घराना शैली संगीत के प्रचार-प्रसार के नए तरीकों के अभाव में पनपी थी, और इसी वजह से फली-फूली भी, क्योंकि इंटरनेट या हवाई सुविधाएं कम होने के कारण लोग एक से दूसरी जगह पहुंचकर नई-नई शैलियां नहीं सीख पाते थे.