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घराना

भारतीय संगीत में संगीत शिक्षा एक कंठ से दूसरे कंठ में ज्यों की त्यों उतारी जाती है। जिसे नायकी ढंग की शिक्षा कहते हैं। और जब एक ही गुरू के अनेक शिष्य हो जाते हैं तो उन्हें घराना या परम्परा कहा जाता है। किराना घराना, ग्वालियर घराना, आगरा घराना, जयपुर घराना इत्यादि घराने भारतीय संगीत में प्रसिद्ध हैं।

घराना प्रणाली

 

  • घराना वंश या प्रशिक्षुता और विशेष संगीत शैली के अनुपालन द्वारा संगीतकारों या नर्तक/नर्तकियों को जोड़ने वाली सामाजिक संगठन की एक प्रणाली है। 
  • घराना शब्द उर्दू/हिंदी शब्द 'घर' से लिया गया है जिसका अर्थ 'परिवार' या 'घर' होता है। यह सामान्यतः उस स्थान को इंगित करता है जहाँ से या संगीतात्मक विचारधारा उत्पन्न हुई है। घराने व्यापक संगीत शास्त्रीय विचारधारा को दर्शाते हैं और इनमें एक शैली से दूसरी शैली में अंतर होता है।
  • यह प्रत्यक्ष रूप से संगीत की समझ, शिक्षण, प्रदर्शन एवं प्रशंसा को प्रभावित करते है। 
  • हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायन के लिये प्रसिद्ध घरानों में से निम्न घराने शामिल होते हैं: आगरा, ग्वालियर, इंदौर, जयपुर, किराना, और पटियाला।

 

खयाल संगीत के अंतर्गत प्रमुख घराने हैं: 

  • ग्वालियर घरानाः यह सबसे पुराने और सबसे बड़े खयाल घरानों में से एक है। यह बहुत कठोर नियमों का पालन करता है क्योंकि यहाँ रागमाधुर्य और लय पर समान बल दिया जाता है। हालाँकि इसका गायन बहुत जटिल है, फिर भी यह सरल रागों के प्रदर्शन को वरीयता देता है। इस घराने के सबसे अधिक लोकप्रिय गायक नाथू खान और विष्णु पलुस्कर हैं। 
  • किराना घराना: इस घराने का नामकरण राजस्थान के 'किराना' गाँव के नाम पर हुआ है। इसकी स्थापना नायक गोपाल ने की थी लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय अब्दुल करीम खान और अब्दुल वाहिद खान को जाता है।
    • ‘किराना’ घराना धीमी गति वाले रागों पर इनकी प्रवीणता के लिये प्रसिद्ध है। ये रचना की मधुरता और गीत में पाठ के उच्चारण की स्पष्टता पर बहुत अधिक बल देते हैं। ये पारंपरिक रागों या सरगम के उपयोग को महत्त्व देते हैं। इस शैली के कुछ प्रसिद्ध गायकों में पंडित भीमसेन जोशी और गंगू बाई हंगल जैसे महान कलाकार शामिल हैं। 
  • आगरा घरानाः इतिहासकारों के अनुसार 19वीं सदी में खुदा बख्श ने इस घराने की स्थापना की थी, परंतु संगीतविदों का मानना है कि इसके संस्थापक हाजी सुजान खान थे। फैयाज खान ने नवीन और गीतात्मक स्पर्श देकर इस घराने को पुनर्जीवित करने का काम किया। तब से इसका नाम रंगीला घराना पड़ गया। वर्तमान में इस शैली के प्रमुख गायकों में सी.आर. व्यास और विजय किचलु जैसे महान गायक आते हैं।
  • पटियाला घराना: बड़े फतेह अली खान और अली बख्श खान ने 19वीं सदी में इस घराने की शुरुआत की थी। इसे पंजाब में पटियाला के महाराजा का समर्थन प्राप्त हुआ। शीघ्र ही उन्होंने गजल, ठुमरी और खयाल के लिये प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली। वे बृहत्तर लय के उपयोग पर बल देते थे। चूँकि उनकी रचनाओं में भावनाओं पर बल होता था अतः उनका रुझान अपने संगीत में अलंकरण या अलंकारों के उपयोग पर अधिक होता था। वे जटिल तानों पर बल देते थे।
    • इस घराने के सबसे प्रसिद्ध संगीतकार बड़े गुलाम अली खान साहब थे। वे भारत के प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायकों में से एक थे। वे राग दरबारी के गायन के लिये प्रख्यात थे। यह घराना तराना शैली के अद्वितीय तान, गमक और गायकी के लिये प्रसिद्ध है। 
  • भिंडी बाज़ार घरानाः छज्जू खान, नजीर खान और खादिम हुसैन ने 19वीं सदी में इसकी स्थापना की थी। उन्होंने लंबी अवधि तक अपनी सांस नियंत्रित करने में प्रशिक्षित गायकों के रूप में लोकप्रियता और ख्याति प्राप्त की। इस तकनीक का उपयोग करते हुए ये कलाकार एक ही सांस में लंबे-लंबे अंतरे गा सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी एक अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि ये अपने संगीत में कुछ कर्नाटक रागों का भी उपयोग करते हैं।
  • डागरी घराना
    • इस शैली में आलाप पर बहुत बल दिया जाता है। ये डागर वाणी में गायन करते हैं। डागर मुसलमान गायक होते हैं, लेकिन सामान्यतः हिंदू देवी-देवताओं के पाठों का गायन करते हैं। उदाहरण के लिये, जयपुर के गुन्देचा भाई। 
  • दरभंगा घराना
    • इस घराने में ध्रुपद खंडार वाणी और गौहर वाणी में गायन होता है। ये रागालाप पर बल देते है और साथ ही तात्कालिक अलाप पर गीतों की रचना करते हैं। 
    • इस शैली का प्रतिनिधि मलिक परिवार है। इस घराने के कुछ प्रसिद्ध गायक हैं- राम चतुर मलिक, प्रेम कुमार मलिक और सियाराम तिवारी। 
  • बेतिया घराना
    • यह घराना केवल परिवार के भीतर प्रशिक्षित लोगों को ज्ञात कुछ अनोखी तकनीकों वाली ‘नौहर और खंडार वाणी' शैलियों का प्रदर्शन करता है। इस शैली का प्रतिनिधि मिश्र परिवार है। इस शैली के गायक हैं-इंद्र किशोर मिश्रा। इसके अतिरिक्त बेतिया और दरभंगा शैलियों में प्रचलित ध्रुपद का रूप हवेली शैली के रूप में जाना जाता है। 
  • तलवंडी घराना
    • यहाँ खण्डर वाणी गाई जाती है चूँकि यह परिवार पाकिस्तान में स्थित है इसलिये इसे भारतीय संगीत व्यवस्था में शामिल करना कठिन हो जाता है।