कथक नृत्य― उत्तर भारत
कथक का नृत्य रूप 100 से अधिक घुंघरुओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
* कथक का जन्म उत्तर में हुआ किन्तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।
* इस नृत्य परम्परा के दो प्रमुख घराने हैं, इन दोनों को उत्तर भारत के शहरों के नाम पर नाम दिया गया है और इनमें से दोनों ही क्षेत्रीय राजाओं के संरक्षण में विस्तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुरघराना।
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जनजातीय और लोक संगीत
जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है।
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शास्त्रीय संगीत के दिग्गज गायक थे पलुस्कर
विष्णु दिगंबर पलुस्कर का नाम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उन गायकों में शामिल किया जाता है जिन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी की कई सभाओं में रामधुन गायी थी। दिल्ली के गंधर्व विद्यालय में अध्यापक ओ. पी. राय ने बताया कि पलुस्कर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे जिन्होंने भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान किया है।
18 अगस्त को जन्मदिन पर विशेष
उन्होंने बताया कि पलुस्कर ने महात्मा गाँधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया।
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गर्भवती के लिए शास्त्रीय संगीत
हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि गर्भवती महिला अगर नियमित रूप से शास्त्रीय संगीत सुनें तो इस दौरान होने वाले तनाव से बच सकती है। सियांग काओह मेडिकल यूनिवर्सिटी, ताईवान के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में गर्भवती महिलाओं को दो समूह में बाँटा। 116 महिलाओं को सुनने के लिए संगीत की सीडी दी जबकि 120 गर्भवतियों की सिर्फ देखभाल की गई उन्हें संगीत नहीं सुनाया गया।
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शास्त्रीय संगीत के बेताज बादशाह हैं पंडितजी
ख्यात शास्त्रीय गायिका पद्मश्री पद्मजा फेणाणी जोगलेकर ने पंडित भीमसेन जोशी को भारत रत्न दिए जाने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि पंडितजी शास्त्रीय संगीत के बेताज बादशाह हैं और उन्हें यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था।
सुश्री पद्मजा ने वेबदुनिया से बातचीत में कहा कि पंडित जोशी ने अपार कष्ट झेलकर स्वरों का महल खड़ा किया है। संगीत साधना के लिए उन्होंने बचपन में ही घर छोड़ दिया था। सवाई गंधर्व समेत कई गुरुओं के सान्निध्य में उन्होंने कठोर कला साधना की।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।