प्रवीण संगीताचार्य (VII Year) - गायन (क्रियात्मक पाठ्यक्रम ) द्वितीय प्रश्नपत्र

1. प्रथम से षष्टम वर्ष के सभी पाठ्यक्रम में दिये गये सभी क्रियात्मक संगीत सम्बन्धित शास्त्र का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
2. पाठ्यक्रम के सभी रागों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। रागों में न्यास के स्वर, अलपत्व.बहुत्व के स्वर, विवादी स्वर और इनका प्रयोग, आविर्भाव.तिरोभाव का प्रदर्शन, समप्रकृतिक रागों की तुलना, रागों में अन्य रागों की छाया आदि विषय के सम्बन्ध में विस्तृत ज्ञान। विगत वर्ष के सभी रागों का पूर्ण ज्ञान होना अनिवार्य है।

ढिमरया नृत्य

ढिमरया नृत्य बुंदेलखण्ड का लोक नृत्य है। इस नृत्य में स्त्री तथा पुरुष दोनों समान रूप से भाग लेते हैं। विवाह आदि के शुभ अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। बुंदेलखंड में ढीमरों के नृत्य अपना विशेष स्थान रखते हैं। 'ढिमरया नृत्य' शादियों में नाचा जाता है।

गणगौर नृत्य

पण्डवानी नृत्य भारत में प्रचलित कुछ प्रमुख लोक नृत्य शैलियों में से एक है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प्रचलित एकल लोक नृत्य है, जिसका प्रस्तुतीकरण समवेत स्वरों में होता है।

इसमें आंगिक क्रियाओं के साथ-साथ गायन भी एक ही व्यक्ति द्वारा एकतारा लेकर किया जाता है।इसमें नर्तक पाण्डवों की कथा को वाद्ययंत्रों की धुन पर गाता जाता है तथा उनका अभिनय भी करता जाता है।वर्तमान समय में यह काफ़ी लोकप्रिय नृत्य शैली है।इसके प्रमुख कलाकारों में झाडूराम देवांगन, तीजनबाई तथा ऋतु वर्मा के नाम काफ़ी प्रसिद्ध हैं।

गरबा नृत्य

गरबा गुजरात, राजस्थान और मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य जिसका मूल उद्गम गुजरात है। आजकल इसे आधुनिक नृत्यकला में स्थान प्राप्त हो गया है। इस रूप में उसका कुछ परिष्कार हुआ है फिर भी उसका लोकनृत्य का तत्व अक्षुण्ण है। 

राग परिचय

हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत

हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।

राग परिचय