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Raag

Sorath

Sorath is an India musical raga (musical mode) that appears in the Sikh tradition from northern India and is part of the Sikh holy scripture called Sri Guru Granth Sahib. Every raga has a strict set of rules which govern the number of notes that can be used; which notes can be used; and their interplay that has to be adhered to for the composition of a tune. In the Guru Granth Sahib, the Sikh holy Granth (book) there are a total of 60 raga compositions and this raga is the twenty fifth raga to appear in the series.

Surdasi Malhar

राग सूरदासी-मल्हार में सारंग अंग और मल्हार अंग का मिश्रण है। आरोह में सारंग अंग जैसे - सा रे म प नि सा' के साथ मल्हार अंग इस तरह से दिखाया जाता है - म रे प ; म प नि१ नि सा'। अवरोह में धैवत स्वर का एक महत्वपूर्ण स्थान है जो सारंग अंग को अलग करता है जैसे - सा' नि१ ध प ; म रे प ; म ध प ; नि१ ध प ; म रे नि सा

Sundarkauns

यह राग बहुत ही प्रभावी और चित्ताकर्षक है। राग मालकौंस के कोमल धैवत की जगह जब शुद्ध धैवत का प्रयोग होता है तब राग सुन्दरकौंस की उत्पत्ति होती है।

Sundarkali

राग सुंदरकली एक मधुर परंतु नया और अप्रचलित राग है। यह राग तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जाता है।

यह स्वर संगतियाँ राग सुंदरकली का रूप दर्शाती हैं - सा रे१ ग प ; प ग प ग रे१ सा ; ग प नि१ प ; प नि१ सा' ; सा' रे१' सा' नि१ प ग प ; ग प नि१ प ग रे१ सा ; ,नि१ सा रे१ सा ;

Sindhura

यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए कभी कभी निषाद शुद्ध का प्रयोग आरोह में इस तरह से किया जाता है - म प नि नि सा'। राग काफी में म प ग१ रे यह स्वर समूह राग वाचक है जबकि सिंधुरा में म प ; म ग१ रे ; म ग१ रे सा इस तरह से लिया जाता है।

यह राग भावना प्रधान होने के कारण इसमें रसयुक्त होरी, ठुमरी, टप्पा इत्यादि गाये जाते हैं। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। यह स्वर संगतियाँ राग सिंधुरा का रूप दर्शाती हैं -

Sindhu Bhairavi

Sindhu Bhairavi
Thaat: Asavari
Jati: Sampooran-Sampooran (7/7)
Vadi: M
Samvadi: S
Vikrit: G,D,N komal
Virjit: none
Aroh: S R g m P d n S*
Avroh: S* n d P m g R S
Time: Day Second Pehar

Sindhu Bhairavi is a raga in Hindustani and Carnatic classical music, belonging to the Asavari thaat. In Carnatic music it is a Janya raga of the 8th melakartha raga Hanumatodi.

राग के अन्य नाम

Sindhura

 यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए कभी कभी निषाद शुद्ध का प्रयोग आरोह में इस तरह से किया जाता है - म प नि नि सा'। राग काफी में म प ग१ रे यह स्वर समूह राग वाचक है जबकि सिंधुरा में म प ; म ग१ रे ; म ग१ रे सा इस तरह से लिया जाता है।

यह राग भावना प्रधान होने के कारण इसमें रसयुक्त होरी, ठुमरी, टप्पा इत्यादि गाये जाते हैं। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। यह स्वर संगतियाँ राग सिंधुरा का रूप दर्शाती हैं -