Jaijaivanti
राग जयजयवन्ती अपने नाम के अनुसार ही अति मधुर तथा चित्ताकर्षक राग है। गाने में पेचीदा होने के कारण इस राग को स्पष्ट रूप से गाने वाले गायक कम हैं। कोमल गंधार सिर्फ अवरोह में रे ग१ रे - इस प्रकार प्रयोग में आता है। यदि शुद्ध गंधार के साथ रे ग रे लिया जाए तो स्वर योजना आरोह की तरफ बढती हुई लेनी चाहिए जैसे - रे ग रे ; रे ग म प ; म ग ; म ग रे; रे ग१ रे सा। अवरोह में यदि एक ही गंधार लिया जाए तो वह शुद्ध गंधार ही होगा जैसे - सा' नि१ ध प म ग रे सा ,नि सा ,ध ,नि१ रे सा। इस तरह ,ध ,नि१ रे में कोमल निषाद मंद्र सप्तक मे
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Gaud Sarang
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Gurjari Todi
राग तोडी में पंचम स्वर को वर्ज्य करने से एक अलग प्रभाव वाला राग गुर्जरी तोडी बनता है। इस राग को गुजरी तोडी भी कहते हैं। इस राग की प्रकृति गंभीर है। यह भक्ति तथा करुण रस से परिपूर्ण राग है।
राग तोड़ी की अपेक्षा इस राग में कोमल रिषभ को दीर्घ रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग गुर्जरी तोडी का रूप दर्शाती हैं -
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Gara
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Gunkali
करुणा और भक्ति रस से परिपूर्ण यह प्रातः कालीन राग श्रोताओं की भावनाओं को आध्यात्मिक दिशा की और ले जाने में समर्थ है। राग दुर्गा में रिषभ और धैवत कोमल करने से राग गुणकली का प्रादुर्भाव हुआ है। धैवत कोमल इसका प्राण स्वर है जिसके बार बार प्रयोग से राग गुणकली का प्रभाव स्पष्ट हो जाता है।
यह राग, भैरव थाट के अंतर्गत आता है। गुणकली एक मींड प्रधान राग है। यह एक सीधा राग है और इसका विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग गुणकली का रूप दर्शाती हैं -
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।