Narakasuravadham Kathakali Dance Drama Kerala
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Kathakali is the classical dance-drama of Kerala, based on mythological themes. This video presents the story Narakasuravadham (Killing of Narakasura).
The performance revolves around the story of Narakasura, a vicious demon and Jayantha, the valorous son of Lord Indra (King of Gods). Nakrathundi, Narakasura’s sister gets attracted to Jayantha and approaches him in the guise of Lalitha, a beautiful woman. Jayantha rejects her love and the disappointed demoness takes her normal form and attacks him. He injures her and a shocked Narakasura vows to take revenge, only to find himself punished for his wrongs.
The artistes performed here are, Margi Vijayakumar (as Lalitha) and Margi Murali (as Nakrathundi).
नृत्य
- कथक नृत्य
कथक नृत्य
कथक न्रुत्य उत्तर प्रदेश क शास्त्रिय न्रुत्य है। कथक कहे सो कथा केह्लाये। कथक शब्द क अर्थ कथा को थिरकते हुए कहना है। प्रछिन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।
कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। वर्तमान समय में बिरजू महाराज इसके बड़े व्याख्याता रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।
भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे पुराना कथक नृत्य जिसका उत्पत्ति उत्तर भारत में हुआ। कथक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'कहानी से व्युत्पन्न करना' है। यह नृत्य कहानियों को बोलने का साधन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। कछवा के राजपुतों के राजसभा में जयपुर घराने का, अवध के नवाब के राजसभा में लखनऊ घराने का और वाराणसी के सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ। अपने अपनी विशिष्ट रचनाओं के लिए प्रसिद्ध एक कम प्रसिद्ध 'रायगढ़ घराना' भी है।
कथक शब्द की उत्पत्ति कथा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ एक कहानी से है । कथाकार या कहानी सुनाने वाले वह लोग होते हैं, जो प्राय: दंतकथाओं, पौराणिक कथाओं और महाकव्यों की उपकथाओं के विस्तृत आधार पर कहानियों का वर्णन करते हैं । यह एक मौखिक परंपरा के रूप में शुरू हुआ । कथन को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें स्वांग और मुद्राएं कदाचित बाद में जोड़ी गईं । इस प्रकार वर्णनात्मक नृत्य के एक सरल रूप का विकास हुआ और यह हमें आज कथक के रूप में दिखाई देने वाले इस नृत्य के विकास के कारणों को भी उपलब्ध कराता है ।
9वीं सदी में अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण के तहत् कथक का स्वर्णिम युग देखने को मिलता है । उसने लखनऊ घराने को अभिव्यक्ति तथा भाव पर उसके प्रभावशाली स्वरांकन सहित स्थापित किया । जयपुर घराना अपनी लयकारी या लयात्मक प्रवीणता के लिए जाना जाता है और बनारस घराना कथक नृत्य का अन्य प्रसिद्ध विद्यालय है ।
कथक में गतिविधि (नृत्य) की विशिष्ट तकनीक है । शरीर का भार क्षितिजिय और लम्बवत् धुरी के बराबर समान रूप से विभाजित होता है । पांव के सम्पूर्ण सम्पर्क को प्रथम महत्व दिया जाता है, जहां सिर्फ पैर की ऐड़ी या अंगुलियों का उपयोग किया जाता है । यहां क्रिया सीमित होती है । यहां कोई झुकाव नहीं होते और शरीर के निचले हिस्से या ऊपरी हिस्से के वक्रों या मोड़ों का उपयोग नहीं किया जाता । धड़ गतिविधियां कंधों की रेखा के परिवर्तन से उत्पन्न होती है, बल्कि नीचे कमर की मांस-पेशियों और ऊपरी छाती या पीठ की रीढ़ की हड्डी के परिचालन से ज्यादा उत्पन्न होती है ।
मौलिक मुद्रा में संचालन की एक जटिल पद्धति के उपयोग द्वारा तकनीकी का निर्माण होता है । शुद्ध नृत्य (नृत्त) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, जहां नर्तकी द्वारा पहनी गई पाजेब के घुंघरुओं की ध्वनि के नियंत्रण और समतल पांव के प्रयोग से पेचीदे लयात्मक नमूनों के रचना की जाती है । भरतनाट्यम्, उड़ीसी और मणिपुरी की तरह कथक में भी गतिविधि के एककों के संयोजन द्वारा इसके शुद्ध नृत्य क्रमों का निर्माण किया जाता है । तालों को विभिन्न प्रकार के नामों से पुकारा जाता है, जैसे टुकड़ा, तोड़ा और परन-लयात्मक नमूनों की प्रकृति के सभी सूचक प्रयोग में लाए जाते हैं और वाद्यों की ताल पर नृत्य के साथ संगत की जाती है । नर्तकी एक क्रम ‘थाट’ के साथ आरम्भ करती है, जहां गले, भवों और कलाईयों की धीरे-धीरे होने वाली गतिविधियों की शुरूआत की जाती है । इसका अनुसरण अमद (प्रवेश) और सलामी (अभिवादन) के रूप में परिचित एक परंपरागत औपचारिक प्रवेश द्वारा किया जाता है ।
आज कथक एक श्रेष्ठ नृत्य के रूप में उभर रहा है । केवल कथक ही भारत का वह शास्त्रीय नृत्य है, जिसका सम्बंध मुस्लिम संस्कृति से रहा है, यह कला में हिन्दू और मुस्लिम प्रतिभाओं के एक अद्वितीय संश्लेषण को प्रस्तुत करता है । इसके अतिरिक्त सिर्फ कथक ही शास्त्रीय नृत्य का वह रूप है, जो हिन्दुस्तानी या उत्तरी भारतीय संगीत से जुड़ा । इन दोनों का विकास एक समान है और दोनों एक दूसरे को सहारा व प्रोत्साहन देते हैं ।
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