डोमकच नृत्य
पूर्वांचल में मुख्य रूप से सोनभद्र जनपद के सुदूर वनों-पहाड़ों के मध्य 'घसिया' जाति के आदिवासी निवास करते हैं। ये कैमूर की गुफाओं में न जाने कब से निवासित हैं तथा मादल, ढोल, नगाड़ा, बांसुरी, निशान, शहनाई आदि वाद्य बनाकर बेचते और उसे बजाकर नाचते - गाते भी हैं। पहले ये राजाओं के यहाँ घोड़ों की 'सईसी' करते थे। इन्होने एक बार अस्पृश्य मानी जाने वाली डोम जाती का स्पर्श करके नाच - गाकर खुशियां मनाई तभी से विवाह, गवना, अन्नप्राशन, मुंडन अथवा होली, दशहरा, दीपावली आदि अवसरों पर पूरे परिवार के साथ नाचने की परंपरा इनमें चल पड़ीं। ये लोग नाचते समय कई कलाओं का प्रदर्शन भी करते हैं।
डोमकच नृत्य छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्यों में से एक है। यह नृत्य आदिवासी युवक-युवतियों का बहुत ही प्रिय नृत्य है। प्राय: यह नृत्य विवाह आदि के शुभ अवसर पर किया जाता है। यही कारण है कि इस नृत्य को ‘विवाह नृत्य’ के नाम से भी जाना जाता है।डोमकच नृत्य अगहन से आषाढ़ माह तक रात भर किया जाता है।अधिकाशत: यह नृत्य वृत्ताकार रूप में नाचते हुए किया जाता है।नृत्य में एक लड़का और एक लड़की गले और कमर में हाथ रखकर आगे-पीछे होते हुए स्वतंत्रतापूर्वक नाचते हैं।इस नृत्य के प्रमुख वाद्ययंत्रों में मांदर, झांझ ओर टिमकी आदि प्रमुख हैं।डोमकच नृत्य के गीतों में ‘सदरी बोली’ का प्रयोग अधिक किया जाता है।
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