Raag
Gandhari
Gandhari
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Sampooran (6/7)
Vadi: D
Samvadi: G
Vikrit: G & D Komal, N & R both
Virjit: G in aroh
Aroh: S R m P d n S*
Avroh: S* N d P m g r S
Time: Day Second Pehar
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Ananda Bhairavi
Anandabhairavi or Ananda Bhairavi (pronounced ānandabhairavi) is a very old melodious rāgam (musical scale) of Carnatic music (South Indian classical music). This rāgam also used in Indian traditional and regional musics. Ānandam (Sanskrit) means happiness and the rāgam brings a happy mood to the listener.
It is a janya rāgam (derived scale) of the 20th Melakarta rāgam Natabhairavi, although some suggest that it is janya of 22nd melakarta Kharaharapriya.
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आनंद भैरवी
Anandabhairavi or Ananda Bhairavi (pronounced ānandabhairavi) is a very old melodious rāgam (musical scale) of Carnatic music (South Indian classical music). This rāgam also used in Indian traditional and regional musics. Ānandam (Sanskrit) means happiness and the rāgam brings a happy mood to the listener.
It is a janya rāgam (derived scale) of the 20th Melakarta rāgam Natabhairavi, although some suggest that it is janya of 22nd melakarta Kharaharapriya.
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Asavari
Asavari
Thaat: Asavari
Jati: Audav-Sampooran (5/7)
Virjit Notes: ‘G’ & ‘N’ in Aroh
Vadi: Dha
Samvadi: Ga
Vikrat Notes: G, D, N komal
Time: Day, Second Pehar
Aroh: S R m P d S*
Avroh: S* n d P m g R S
राग आसावरी का परिचय
वादी: ध॒
संवादी: ग॒
थाट: ASAWARI
आरोह: सारेमपध॒सां
अवरोह: सांनि॒ध॒पमग॒रेसा
पकड़: रेमपनि॒ध॒प
रागांग: उत्तरांग
जाति: AUDAV-SAMPURN
समय: दिन का प्रथम प्रहर
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गोपिका बसन्त
यह एक बहुत ही मीठा राग है। इस राग में राग मालकौन्स की झलक दिखाई देती है, पर पंचम का उपयोग करने से यह राग मालकौन्स से अलग दिखाई देता है। आरोह में पंचम का उपयोग कम किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग गोपिका बसंत का रूप दर्शाती हैं -
,ध१ ,नि१ सा ; ग१ ग१ म ग१ सा ; सा ग१ म प म ; म प म ग१ सा ; ग१ म ध१ ध१ नि१ ध१ म ; प ध१ नि१ ; म नि१ ध१ ; प म ग१ म प ; ग१ म ग१ ; नि१ ध१ म प ग१ म ; ग१ म प म ग१ सा ,ध१ ,नि१ ,ध१ सा ,नि१ ग१ सा ; ग१ म ग१ सा ; नि१ ध१ प नि१ ध१ प म ग१ ; प म प म ग१ ; ग१' सा' नि१ ; ध१ नि१ ; प ध१ म प ग१ म ; प म ग१ सा ; ,ध१ ,ध१ ,नि१ ,नि१ सा ;.
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गोरख कल्याण
यह एक बहुत ही मीठा और प्रभावशाली राग है। आरोह में तीन स्वर वर्ज्य होने के कारण इस राग की जाति सुरतर कहलाती है।
इस राग में मध्यम एक महत्वपूर्ण स्वर है जो इस राग का वादी और न्यास स्वर है। इसी कारण यह राग नारायणी से अलग हो जाता है, जिसमें न्यास और वादी स्वर पंचम है। गोरख कल्याण में मन्द्र सप्तक का कोमल निषाद एक न्यास स्वर है जो इस राग की पहचान है। आरोह में निषाद वर्ज्य है जिसके कारण यह राग बागेश्री से अलग हो जाता है। परन्तु कोमल निषाद को आरोह में अल्प स्वर के रूप में लगाते हैं जो इस राग की सुंदरता बढ़ाता है जैसे - ,ध ,नि१ रे सा या ,नि१ सा रे सा।
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यमनी बिलावल
यमनी बिलावल राग की रचना कल्याण थाट से मानी गई है। इसमें दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इसकी जाति सम्पूर्ण मानी जाती है। वादी स्वर पंचम और संवादी षडज है। गायन समय प्रातःकाल दिन का प्रथम प्रहर है।
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जैत कल्याण
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है। सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। मध्यम और निषाद वर्ज्य होने से इसकी जाति ओडव मानी जाती है। वादी पंचम और संवादी ऋषभ है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
- पकड़– रे म॑प, ध प म॑प, ग म रे, ग नि सा।
- थाट – कल्याण थाट
- वर्ज्य स्वर – आरोह में गंधार और धैवत वर्ज्य है
- जाति – औडव-औडव
- वादी – संवादी – प – रे
गायन समय -गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
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चाँदनी केदार
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई हैं। दोनों मध्यम, दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। आरोह में ऋषभ, गंधार वर्जित तथा अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते है, इसलिये इसकी जाति ओडव- सम्पूर्ण है। वादी स्वर मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। चलन वक्र है।
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गोपिकाबसन्त
इसे आसावरी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल लगते है। ऋषभ वर्ज्य होने की वजह से इसकी जाति षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।
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