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सुरों को मैं माँ को अर्पित

सुरों को मैं माँ को अर्पित

जिस प्रकार सा जनक हैं सारे सुरों का ,साम गान जनक हैं शास्त्रीय संगीत का जिसके जैसा संगीत सारे संसार में कही नही हैं .साम वेद और चारो वेद अलौकिक और दुर्लभ हैं.
संस्कृत भी वह भाषा हैं जो सारी भाषाओ की जननी हैं .

दूसरा स्वर हैं ऋषभ,अर्थात रे,राग व् रस से परिपूर्ण कलाओ से समृध्ध हैं माँ तेरा आँचल,कही नही वह ६४ कलाए माँ तेरे आँगन में सुंदर बालको सी रात - दिवस खेल रही हैं ,अपनी सुंदर उपस्तिथि से तेरे रूप वैभव को द्विगुणित कर रही हैं.

तीसरा स्वर गांधार,प्राचीनकाल में एक राज्य था गांधार वहा की राजकुमारी गांधारी और ध्रितराष्ट्र की पत्नी महान सती थी ,न जाने कितनी सती और संन्नारिया तेरी पुत्री हैं माँ,रूप,गुण , कला, संस्कार से सुशोभित तेरी ये पुत्रिया अजरामर हैं ,
ग से ही हैं गंगा ,गंगा जो हमारी पवित्र नदी हैं,शिव की जटा से निकल युगों से भारतीय जनमानस को पोषित, पवित्र कर रही हैं,न सिर्फ़ गंगा! कावेरी ,यमुना, कृष्णा, गोदा जैसी कितनी ही छोटी बड़ी नदिया तेरी हरी भरी साडी को अपने हीरे की तरह पारदर्शी जल रूपी मोतियों से सजा रही हैं ।
गीता व अन्य दर्शन तेरी ही पूंजी हैं .

चौथा स्वर मध्यम,म से मानव,माँ सृष्टिकर्ता ने तेरी गोद में अरबो मानव -मानवी सुपुत्र ,पुत्रिया डाले हैं ,तेरी यह मानव सम्पंदा अतुलनीय हैं . म से ही मन्दिर मस्जिद ,माँ तेरे बालक उस सृजनकर्ता में पुरा विश्वास रखते है और न जाने कितने मंदिरों मस्जिदों में उसकी अनेकानेक रूपों में आराधना करते हैं,यह उनके पावित्र्य का सूचक तो हैं ही माँ,साथ उनके बनाये मन्दिर मस्जिद वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्वितीय अभूतपूर्व हैं ।

पांचवा स्वर पंचम अर्थात प,प से पर्वत ,विन्ध्याचल सतपुडा की पर्वत श्रेणिया तो विश्व प्रसिध्ध हैं ही,साथ ही हिमालय जो वन्याऔश्धि से परिपूर्ण व अन्य पर्वत भी तेरा सौन्दर्य बढ़ा रहे हैं .

छठा स्वर धैवत ध , ध से धर्मं माँ कितने ही धर्मं तेरी श्वासों से जन्म लिए हैं,हम सभी अलग अलग धर्मो में विश्वास रखते हैं उनका पालन करते हैं फ़िर भी हम धर्मनिरपेक्ष हैं कयोकी हम सभी धर्मो का सन्मान करते हैं उन्हें सामान आदर देते हैं .

सातवा स्वर निषाद अर्थात नि ,नि से निसर्ग माँ तेरी नैसर्गिक सुन्दरता अप्रतिम हैं,निसर्ग ने तुझे प्रचुर हीरे,मोती,मनिक्यो से सजाया हैं,निसर्ग ने तुझे न जाने कितने वन्य पशु पक्षियों का वरदान दिया हैं,निसर्ग ने तेरे अन्तर में न जाने कितने खजाने भर दिए हैं .माँ तू श्रेष्ट हैं ,पञ्च महाभूतो ने तुझ पर अपना विपुल प्रेम बरसाया हैं