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कुची पुडी नृत्य

कुची पुडी नृत्य

कुचीपुडी के पंद्रह ब्राह्मण परिवारों ने पांच शताब्दियों से अधिक समय तक परम्‍परा को आगे बढ़ाया है। प्रतिष्ठित गुरु जैसे वेदांतम लक्ष्‍मी नारायण, चिंता कृष्‍णा मूर्ति और ता‍देपल्‍ली पेराया ने महिलाओं को इसमें शामिल कर नृत्‍य को और समृद्ध बनाया है। डॉ॰ वेमापति चिन्‍ना सत्‍यम ने इसमें कई नृत्‍य नाटिकाओं को जोड़ा और कई एकल प्रदर्शनों की नृत्‍य संरचना तैयार की और इस प्रकार नृत्‍य रूप के क्षितिज को व्‍यापक बनाया। यह परम्‍परा तब से महान बनी हुई है जब पुरुष ही महिलाओं का अभिनय करते थे और अब महिलाएं पुरुषों का अभिनय करने लगी हैं।


कुचीपुडी

कुचीपुड़ी भारतीय नृत्‍य की एक पारंपरिक शैली है । इस शताब्‍दी के तीसरे व चौथे दशक के आसपास यह नृत्‍य-शैली इस नाम के नृत्‍य-नाटक की लंबी तथा समृद्ध परंपरा से उद्भूत हुई ।
शरीर संतुलन व पादकौशल तथा उसके नियंत्रण में नर्तक कलाकारों की दक्षता प्रदर्शित करने हेतु पीतल की थाली की किनारी पर नृत्‍य करना तथा सिर पर पानी से भरा घड़ा लेकर नृत्‍य करने जैसी कुशलताओं को जोड़ा गया । इस शताब्‍दी के मध्‍य तक कुचीपुड़ी नृत्‍य शैली एक सर्वथा स्‍वतंत्र शास्‍त्रीय एकल नृत्‍य शैली के रूप में पूर्णत: स्‍थापित हो गई । इस प्रकार, अब कुचीपुड़ी नृत्‍य की दो शैलियां हैं: नृत्‍य-नाटक तथा एकल नृत्‍य-प्रस्‍तुति ।
इस शताब्‍दी के चौथे दशक के उत्‍तरार्द्ध से एकल प्रस्‍तुति के क्रम का तेजी से विस्‍तार हुआ । कुचीपुड़ी नृतय-प्रस्‍तुति,       एक प्रार्थनामयी प्रस्‍तति से आरंभ होती है, जैसा कि अन्‍य शास्‍त्रीय नृत्‍य शैलियों में होता है । पहले प्रार्थना या आह्वान केवल गणेश वंदना तक ही सीमित था । अब अन्‍य देवताओं का भी आह्वान किया जाता है । तत्‍पश्‍चात् अवर्णनात्‍मक तथा काल्पनिक नृत्‍य अर्थात् नृत्‍त प्रस्‍तुति होती है । अक्‍सर जतिस्‍वरम् को नृत्‍त के ही रूप में प्रस्‍तुत किया जाता है । इसके बाद शब्‍दम् नामक वर्णनात्‍मक प्रस्‍तुति की जाती है । परंपरागत लोकप्रिय शब्‍दम् प्रस्‍तुति में से एक है- दशावतार । शब्‍दम् के बाद नाट्य-प्रस्‍तुति स्‍वरूप कलापम् प्रस्‍तुत किया जाता है । अनेक परंपरागत नर्तक कलाकार, भामाकलापम् नाम परंपरागत नृत्‍य नाटक से सत्‍यभामा पात्र-प्रवेश को प्रस्‍तुत करना पसंद करते है । ‘भामणे, सत्‍यभामणे’ गीत तथा परंपरागत प्रवेश दारू (चरित्र विशेष के प्रवेश के समय प्रस्‍तुत किया जाने वाला गीत) इतना सुरीला व श्रुतिमधुर होता है कि उसका आर्कषण, व्‍यापक और सदाबहार प्रतीत होता है । इसी अनुक्रम में, तत्‍पश्‍चात् पदम्, जावली, श्‍लोकम् आदि साहित्यिक व संगीत स्‍वरूपों पर आधारित विशुद्ध नृत्‍याभिनय-प्रस्‍तुति की जाती है । ऐसी प्रस्‍तुति में गाए गए प्रत्‍येक शब्‍द को नृत्‍य की मुद्राओं द्वारा प्रस्‍तुत किया जाता है । इस प्रकार के नृत्‍य को उपयुक्‍तत: दृश्‍य-कवित्‍त (दृश्‍य-काव्‍य) कहा जा सकता है । सामान्‍यत: कुचीपुड़ी नृत्‍य-प्रस्‍तुति को तरंगम् प्रस्‍तुति के पश्‍चात् समाप्‍त किया जाता है । इस प्रस्‍तुति के साथ कृष्‍ण-लीला-तरंगिणी के उद्धरण गाए जाते हैं । इसमें अक्‍सर नर्तक कलाकार शकट-वदनम् पाद मुद्रा में पीतल की थाली पर पांवों को रखकर खड़ा रहता है और अत्‍यंत कुशलतापूर्वक लयात्‍मक रूप से थाली को घुमाता है ।
नृत्‍य प्रस्‍तुति के साथ संगत रूप में कर्नाटक संगीत की शास्‍त्रीय शैली सहित परिवर्तनीय आह्लादक प्रस्‍तुति की जाती है । गायकों के अतिरिक्‍त, अन्‍य संगत कलाकार भी होते हैं । ताल संगीत प्रस्‍तुत करने हेतु एक मृदंगम्-वादक, सुरीला वाद्यात्‍मक संगीत प्रदान करने हेतु एक वॉयलिन अ‍थवा वीणा-वादक या दोनों, एक मंजीरा-वादक, जो अक्‍सर वाद्य वृंद का संचालन करता है और सोल्‍लुकट्टु (स्‍मरणोपकारी ताल के बोल) का उच्‍चारण करता है ।
 

Comments

Anand Sat, 12/12/2020 - 21:37

Pranav Institute of Kuchipudi Dance
A deep love for Kuchipudi and a fiery zeal to preserve and promote this classical dance form has led Dr.G. Padmaja Reddy to start 'Pranav Institute of Kuchipudi Dance'- a dance school where she imparts formal training in Kuchipudi. As Padmaja became an active and mature performer, she realised that teaching was a wonderful way to pass on this legacy to the future generations as well as help herself evolve as a creative personality.
Pranav Institute of Kuchipudi Dance functions as a trust, and Dr. Padmaja Reddy donates the income generated to old artists. More than two generations of students comprising mostly of girls from the underprivileged classes have been trained here to become teachers, performers and performance conductors.
With two branches in Hyderabad and one in Florida, Pranav Institute of Kuchipudi Dance has come to be known as one of the most sought after dance schools in Hyderabad. Padmaja has choreographed numerous ballets and presented them with her troupe in India and abroad. Students from this famous dance academy have won awards and have carved a special niche for themselves. Padmaja strives to inculcate in her students the same kind of dedication and love that she has nurtured for this art form. Many of her students have taken up Kuchipudi for life and teach in their own dance school. See less
 

https://www.facebook.com/pranavinstitute

Anand Tue, 08/02/2022 - 21:56

कुचिपुड़ि आंध्र प्रदेश की एक स्‍वदेशी नृत्‍य शैली है जिसने इसी नाम के गांव में जन्‍म लिया और पनपी, इसका मूल नाम कुचेलापुरी या कुचेलापुरम था, जो कृष्‍णा ज़िले का एक कस्‍बा है। अपने मूल से ही यह तीसरी शता‍ब्‍दी बीसी में अपने धुंधले अवशेष छोड़ आई है, यह इस क्षेत्र की एक निरंतर और जीवित नृत्‍य परम्‍परा है। कुचीपुडी कला का जन्‍म अधिकांश भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍यों के समान धर्मों के साथ जुड़ा हुआ है। एक लम्‍बे समय से यह कला केवल मंदिरों में और वह भी आंध्र प्रदेश के कुछ मंदिरों में वार्षिक उत्‍सव के अवसर पर प्रदर्शित की जाती थी।

इतिहास

परम्‍परा के अनुसार कुचीपुडी नृत्‍य मूलत: केवल पुरुषों द्वारा किया जाता था और वह भी केवल ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों द्वारा। ये ब्राह्मण परिवार कुचीपुडी के भागवतथालू कहलाते थे। कुचीपुडी के भागवतथालू ब्राह्मणों का पहला समूह 1502 ए. डी. निर्मित किया गया था। उनके कार्यक्रम देवताओं को समर्पित किए जाते थे तथा उन्‍होंने अपने समूहों में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया।

 

 

कुचिपुड़ि नृत्यांगना

महिला नृत्‍यांगनाओं के शोषण के कारण नृत्य कलाके ह्रास के युग में एक सिद्ध पुरुष सिद्धेंद्र योगी ने नृत्‍य को पुन: परिभाषित किया। कुचीपुडी के पंद्रह ब्राह्मण परिवारों ने पांच शताब्दियों से अधिक समय तक परम्‍परा को आगे बढ़ाया है। प्रतिष्ठित गुरु जैसे वेदांतम लक्ष्‍मी नारायण, चिंता कृष्‍णा मूर्ति और ता‍देपल्‍ली पेराया ने महिलाओं को इसमें शामिल कर नृत्‍य को और समृद्ध बनाया है। डॉ. वेमापति चिन्‍ना सत्‍यम ने इसमें कई नृत्‍य नाटिकाओं को जोड़ा और कई एकल प्रदर्शनों की नृत्‍य संरचना तैयार की और इस प्रकार नृत्‍य रूप के क्षितिज को व्‍यापक बनाया। यह परम्‍परा तब से महान बनी हुई है जब पुरुष ही महिलाओं का अभिनय करते थे और अब महिलाएं पुरुषों का अभिनय करने लगी हैं।

नृत्‍य नाटिका

 

कुची पुडी नृत्य

कुचीपुडी कला एक ऐसे नृत्‍य नाटिका के रूप में आशयित की गई थी, जिसके लिए चरित्र का एक सैट आवश्‍यक था, जो केवल एक नर्तक द्वारा किया जाने वाला नृत्‍य नहीं था जो आज के समय में प्रचलित है। इस नृत्‍य नाटिका को कभी कभी अट्टा भागवतम कहते हैं। इसके नाटक तेलुगु भाषा में लिखे जाते हैं और पारम्‍परिक रूप से सभी भूमिकाएं केवल पुरुषों द्वारा निभाई जाती है।

प्रस्‍तुतिकरण

कुचीपुडी नाटक खुले और अभिनय के लिए तैयार मंचों पर खेले जाते हैं। इसके प्रस्‍तुतिकरण कुछ पारम्‍परिक रीति के साथ शुरू होते हैं और फिर दर्शकों को पूरा दृश्य प्रदर्शित किया जाता है। तब सूत्रधार मंच पर सहयोगी संगीतकारों के साथ आता है और ड्रम तथा घंटियों की ताल पर नाटक की शुरुआत करता है। एक कुचीपुडी प्रदर्शन में प्रत्‍येक प्रधान चरित्र दारु के साथ आकर स्‍वयं अपना परिचय देता है। दारु नृत्‍य की एक छोटी रचना है और प्रत्‍येक चरित्र को अपनी पहचान प्रकट करने के लिए एक विशेष गीत दिया जाता है साथ ही वह‍ नृत्‍यकार को कला का कौशल दर्शाने में भी सहायता देता है। एक नृत्‍य नाटिका में लगभग 80 दारु या नृत्‍य क्रम होते हैं। एक सुंदर पर्दे के पीछे, जिसे दो व्‍यक्ति पकड़ते हैं, सत्‍यभामा दर्शकों की ओर पीठ किए हुए मंच पर आती हैं। भामा कल्‍पम में सत्‍यभामा विप्रलांबा नायिकी या नायिका हैं जिसे उसका प्रेमी छोड़ गया है और वह उसकी अनुपस्थिति में उदास है।

मटका नृत्‍य

कुचीपुडी नृत्‍य का सबसे अधिक लोकप्रिय रूप मटका नृत्‍य है जिसमें एक नर्तकी मटके में पानी भर कर और उसे अपने सिर पर रखकर पीतल की थाली में पैर जमा कर नृत्‍य करती है। वह पीतल की थाली पर नियंत्रण रखते हुए पूरे मंच पर नृत्‍य करती है और इस पूरे संचलन के दौरान श्रोताओं को चकित कर देने के लिए उसके मटके से पानी की एक बूंद भी नहीं गिरती है।

गोला कलापम

 

कुचिपुड़ि नृत्य, आंध्र प्रदेश

भामा कल्‍पम के अलावा एक अन्‍य प्रसिद्ध नृत्‍य नाटिका है गोला कलापम जिसे भगवत रामाया ने लिखा है, तिरुमाला नारयण चिरयालु द्वारा लिखित प्रहलाद चरितम, शशि रेखा परिणय आदि।

विशेषता

इस कला की साज सज्‍जा और वेशभूषा इसकी विशेषता हैं। इसकी वेशभूषा और साज सज्‍जा में बहुत अधिक कुछ नहीं होता है। इसकी एक महत्‍वपूर्ण विशेषता इसके अलग अलग प्रकार की सज्‍जा में है और इसके महिला चरित्र कई आभूषण पहनते हैं जैसे कि रकुडी, चंद्र वानिकी, अडाभासा और कसिनासारा तथा फूलों और आभूषणों से सज्जित लंबी वेणी।

संगीत वाद्य

कुचीपुड़ी का संगीत शास्‍त्रीय कर्नाटक संगीत होता है। मृदंग, वायलिन और एक क्‍लेरीनेट इसमें बजाए जाने वाले सामान्‍य संगीत वाद्य हैं।

वर्तमान समय

आज के समय में कुचिपुड़ि में भी भरतनाट्यम के समान अनेक परिवर्तन हो गए हैं। वर्तमान समय के नर्तक और नृत्‍यांगनाएं कुचीपुडी शैली में उन्‍नत प्रशिक्षण लेते हैं और अपनी वैयक्तिक शैली में इस कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें वर्तमान समय में केवल दो मेलम या पुरुष प्रदर्शकों के व्‍यावसायिक दल हैं। इसमें अधिकांश नृत्‍य महिलाएं करती हैं। वर्तमान समय के प्रदर्शन में कुचीपुडी नृत्‍य नाटिका से घट कर नृत्‍य तक रह गया है, यह जटिल रंग मंच अभ्‍यास के स्‍थान पर नियमित मंच प्रदर्शन बन गया है।