Megh
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Multani
यह अत्यंत मधुर राग है। राग तोडी से बचने के लिये राग मुलतानी में ,नि सा म१ ग१ रे१ सा - यह स्वर समुदाय लिया जाता है। आलाप की समाप्ति इन्ही स्वरों से की जाती है। इसमे रिषभ पर जोर नहीं देना चाहिये। इस राग में मध्यम और गंधार को मींड के साथ बार बार लिया जाता है। प्रायः आलाप और तानों का प्रारंभ मन्द्र निषाद से किया जाता है।
यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति रस की अनुभूति होती है।
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Khamaj
Khamaj (IAST: Khamāj) is one of the ten thaats (parent scales) of Hindustani music from the Indian subcontinent. It is also the name of a raga within this thaat.
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Khambavati
राग खम्बावती बहुत ही मधुर राग है। राग झिंझोटी, जो की ज्यादा प्रचलन में है, इससे मिलता जुलता राग है। ग म सा - यह राग खम्बावती की राग वाचक स्वर संगति है। सामान्यतया इस राग का आरोह सा रे म प ध सा है परन्तु गंधार का उपयोग आरोह में ग म सा इस स्वर संगती में ही किया जाता है। कभी-कभी आरोह में शुद्ध निषाद का प्रयोग म प नि नि सा' इस तरह से किया जाता है।
राग के अन्य नाम
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Kausi Kanada
यह राग दो विभिन्न अंगों द्वारा गाया जाता है - मालकौंस अंग और बागेश्री अंग। लेकिन मालकौंस अंग ही ज्यादा प्रचलन में है। अतः यहाँ उसी को दर्शाया गया है। इस राग में मालकौंस और कान्हडा अंग का मिश्रण झलकता है। मीण्ड, खटके और गमक इनके प्रयोग से इस राग का माधुर्य श्रोताओं पर अपना अलग ही प्रभाव डालता है।
आलाप और तानों का अंत ग१ म रे सा (कान्हडा अंग) अथवा ग१ म ग१ सा (मालकौन्स अंग) से किया जाता है। आरोह में रिषभ का प्रयोग सा रे ग१ म रे सा अथवा रे ग१ म सा इस तरह से किया जाता है।
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राग परिचय
हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक संगीत
हिन्दुस्तानी संगीत में इस्तेमाल किए गए उपकरणों में सितार, सरोद, सुरबहार, ईसराज, वीणा, तनपुरा, बन्सुरी, शहनाई, सारंगी, वायलिन, संतूर, पखवज और तबला शामिल हैं। आमतौर पर कर्नाटिक संगीत में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों में वीना, वीनू, गोत्वादम, हार्मोनियम, मृदंगम, कंजिर, घमत, नादाश्वरम और वायलिन शामिल हैं।