वीणा
वीणा भारत के लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत में किया जाता है। वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है। समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं -रुद्रवीणा, विचित्र वीणा वगैरह लेकिन इसका प्राचीनतम रूप एक-तन्त्री वीणा है। ऐसा कहा जाता है कि मध्यकाल में अमीर खुसरो दहलवी ने सितार की रचना वीणा और बैंजो (जो इस्लामी सभ्यताओं में लोकप्रिय था) को मिलाकर किया, कुछ इसे गिटार का भी रूप बताते हैं। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्यों की तीनों विशेषताएं हैं। वीणा वस्तुत: तंत्री वाद्यों का संरचनात्मक नाम है। तंत्री या तारों के अलावा इसमें घुड़च, तरब के तार तथा सारिकाएँ होती हैं। यह तत वाद्य में शामिल होता है।
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सरस्वती के हाथों में सिर्फ वीणा ही क्यों, जानिए क्या है पौराणिक
हिंदी धर्म एक ऐसा धर्म है। जहां पर करोड़ो देवी-देवता की पूजा की जाती है। यह अपने रीति-रिवाजों औप परंपराओं के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हीं करोड़ो देवी-देवताओं में से एक है देवी सरस्वती। जिन्हें ज्ञान और संगीत की देवी कहा जाता है। अगर कोई इनकी सच्चे मन से पूजा करें तो उसे बुद्धि का साथ ज्ञान की प्राप्ति होती है।
देवी सरस्वती जो कमल में विराजमान। जिनके हाथों में वीणा साथ ही जिनका वाहन मोर है। अपनी शांति और प्रसन्नचित रहने के कारण सभी से प्रसन्न रहती है। यह बहुत ही जल्दी प्रसन्न भी हो जाती है। यह अपने हाथों में वीणा लिए हुए है, लेकिन कभी आपने सोचा कि यह संगीत की देवी है वीणा के अलावा कोई और वाद्य यंत्र क्यों नहीं लिया।
माता सरस्वती का इस वीणा से क्या संबंध है। हमारे मन में ऐसे ही कई प्रश्न आते है। जिनका जवाब हमें पता नहीं होता है। हिंदू धर्म में वंसत पंचमी का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर विद्याथियों और ऋषियों के लिए ये दिन होता है। इस दिन ये देवी सरस्वती की पूजा विधि-विधान के साथ करते है। आज हम आपको अपनी खबर में बताते है कि आखिर क्यों माता सरस्वती वाद्य यंत्रों में वीणा को ही चुना।
वास्तव में समस्त वाद्य यंत्रों में वीणा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसकी धुनों का संबंध सीधे ईश्वर से स्थापित होता है। ऋषि यज्ञवल्क्य ने इस बारें में कहा था कि वे मनुष्य जिसे वीणा में महारथ हासिल है, उसे बिना प्रयास के मोक्ष की प्राप्ति होती है”।
देवी सरस्वती के हाथ में वीणा बहुत कुछ दर्शाती हैं। देवी सरस्वती के हाथ में जो वीणा है उसे “ज्ञान वीणा” कहा जाता है। यह ज्ञान, अध्यात्म, धर्म और अन्य सभी भौतिक वस्तुओं से संबंधित है। जब वीणा को बजाया जाता है, उसमें से निकलने वाली धुन चारों ओर फैले अज्ञान के अंधकार का नाश करती हैं।
माना जाता है कि वीणा की गर्दन के भाग में महादेव, इसकी तार में पार्वती, पुल पर लक्ष्मी, सिरे पर विष्णु और अन्य सभी स्थानों पर सरस्वती का वास होता है। वीणा को समस्त सुखों का स्रोत भी माना जाता है।
आपने ध्यान दिया हो तो आपने देखा होगा कि देवी सरस्वती वीणा के ऊपरी भाग को अपने बाएं हाथ से निचले भाग को अपने दाएं हाथ से थामे नजर आती हैं। यह ज्ञान के हर क्षेत्र पर निपुणता के साथ उनके नियंत्रण को दर्शाता है। साथ ही इस वीणा के अंदर सभी देवी-देवता भी विराजते हैं।
वीणा की धुन रचना के मौलिकता को प्रदर्शित करती है। ये ब्रह्मांड में प्राण भरने का कार्य करती है। वीणा की धुन, उसकी तारें जीवन को दर्शाती हैं। इसके स्वर स्त्री स्वर से मेल खाते हैं। वीणा की कंपन दैवीय ज्ञान की ओर इशारा करती हैं। वीणा के बजने पर ये ज्ञान पानी की तरह बहने लगता है।
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वीणा और सितार में क्या अंतर है?
वीणा एक प्राचीन वाद्य-यंत्र है, जो मां सरस्वती एवं देवर्षि नारद के कर-कमलों को सुशोभित करती है। सितार अफगानी, ईरानी रबाब का समुन्नत भारतीय संस्करण है, जिसका श्रेय अमीर खुसरो को जाता है।
वीणा सुर-ध्वनियों के लिए एक प्राचीन भारतीय वाद्ययंत्र है। इसका प्राचीनतम रूप एक-तंत्री वीणा है। रूद्र वीणा, विचित्र वीणा, मोहन वीणा, रंजन वीणा आदि इसके प्रकार हैं।
इसमें आमतौर पर चार तारों का प्रयोग होता है। उनकी लम्बाई में कोई विभाजन नहीं होता।
तारों का कंपन एक गोलाकार घड़े से तीव्र होती है एवं विभिन्न आवृत्तियों की ध्वनियां पैदा होती हैं, जो प्राचीन संगीत के उपयुक्त है। तारों के अतिरिक्त इसमें घुड़च, तरब के तार एवं सारिकाएं भी होती हैं।
सितार में तार का विभाजन किया जाता है। यह प्राचीन त्रितंत्री वीणा का विकसित रूप है और भारतीय तंत्री वाद्यों की तीनों विशेषताएं लिए हुए है।
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