शख्सियत
गायक और थिएटर अभिनेता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर
पंडित दीनानाथ मंगेशकर (29 दिसंबर 1900 - 24 अप्रैल 1942) एक असाधारण हिंदुस्तानी शास्त्रीय, अर्ध-शास्त्रीय और नाट्य-संगीत गायक और मराठी थिएटर अभिनेता थे। उन्हें लोकप्रिय रूप से मास्टर दीनानाथ मंगेशकर और महान मंगेशकर बहनों के पिता के रूप में जाना जाता है। उनके बच्चे-लता मंगेशकर, आशा भोसले, हृदयनाथ मंगेशकर, मीना खादिकर और उषा मंगेशकर बेशक भारतीय संगीत उद्योग के सबसे बड़े नाम हैं!
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तबला वादक और गुरु पद्म भूषण पंडित निखिल घोष
पंडित निखिल ज्योति घोष (२ Nik दिसंबर १ ९ १y - ३ मार्च १ ९९ ५) एक भारतीय संगीतकार, शिक्षक और लेखक थे, जो तबले के ताल वाद्य पर अपनी दक्षता जानते थे। उन्होंने 1956 में संगीत की एक संस्था संगित महाभारती की स्थापना की, और भारत और विदेशों में विभिन्न चरणों में प्रदर्शन किया। उस्ताद हाफिज अली खान पुरस्कार के प्राप्तकर्ता, उनकी शैली को दिल्ली, अजरदा, फरुखाबाद, लखनऊ और पंजाब के तबला के साथ गठबंधन करने के लिए जाना जाता था। 1990 में भारत सरकार ने उन्हें संगीत में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया।
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आखिरी साँस तक बाँसुरी बजाने की ख्वाहिश : पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
आखिरी साँस तक बाँसुरी बजाने और इसमें शोध करने की ख्वाहिश का इजहार करते हुए प्रसिद्ध बाँसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा कि यह लोकधुन पर आधारित वाद्य है और यह शास्त्रीय संगीत का एकमात्र ऐसा वाद्ययंत्र है, जो पूरी दुनिया में बजाया जाता है।
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पंडित भीमसेन जोशी : एक युग का अवसान
अपनी ओजस्वी वाणी से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के खजाने को समृद्धि के नए शिखर पर ले जाने वाले पंडित भीमसेन जोशी का पुणे में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।
उनके परिवार ने बताया कि जोशी जी को 31 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वृद्धावस्था की परेशानियों के कारण उनके गुर्दे और श्वसन तंत्र ने काम करना बंद कर दिया था, जिसके बाद उन्हें जीवन रक्षक तंत्र पर रखा गया था।
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सितार वादन का घराना हैं पंडित रविशंकर
पंडित रविशंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत का ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें विश्व संगीत का गॉडफादर कहा गया है। वे केवल सितार वादक नहीं, बल्कि एक घराना हैं जिसका नई पीढ़ी के साधक अनुसरण कर रहे हैं।
पंडित रविशंकर देश के उन प्रमुख साधकों में से हैं, जो देश के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। वे लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा खाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान के साथ जुड़े रहे।
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सात सुरों की पर्याय सुब्बलक्ष्मी
बहती नदी की कलकल ध्वनि की तरह सहज स्वरों में गाने वाली एमएस सुब्बलक्ष्मी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की गंभीरता में अपनी भक्तिमय भावनाओं को मिलाकर एक ऐसी मधुरता पैदा की जो आज भी श्रोताओं को आनंद से सराबोर कर देती है।
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ए आर रहमान
अल्लाह रक्खा रहमान हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। इनका जन्म ६ जनवरी १९६७ को चेन्नई, तमिलनाडु, भारत में हुआ। जन्म के उपरांत उनका नाम ए. एस. दिलीपकुमार मुदलियार रखा गया था, जिसे बाद में बदलकर वे ए. आर. रहमान बनें। सुरों के बादशाह रहमान ने अपनी मातृभाषा तमिऴ के अलावा हिंदी और कई अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी संगीत दिया है। टाइम्स पत्रिका ने उन्हें मोजार्ट ऑफ मद्रास की उपाधि दी।
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जगजीत सिंह
जगजीत जी का जन्म 8 फ़रवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।
शिक्षा
शुरुआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
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खादिम हुसैन खान
Khadim Hussain Khan (1907–1993) was an Indian singer born in Atrauli, Uttar Pradesh, India. Initiated into music by his father Altaf Hussain Khan, he went on to learn from his grand uncle Ustad Kallan Khan. They were both court musicians of the Jaipur Kingdom.
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रजब अली खान
Rajab Ali learned music from his father Manglu Khan in the tradition of Bade Mohammad Khan, and from Bande Ali Khan Beenkar. Therefore his style was a mix of the Jaipur Gharana and Kirana gharana styles. He was a court musician of Dewas and Kolhapur. He also performed on concert tours. He was also a court musician of Ram Singh II of Jaipur State
In 1909, he was conferred the title of Sangeet Ratna Bhushan by the Maharaja of Mysore, and in 1954 he received a Sangeet Natak Akademi AwardHis last big concert was held in 1957, in Bombay now called Mumbai.[citation needed]
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