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શાસ્ત્રીય સંગીતને પ્રોત્સાહન મળ્યું - જસરાજ

अपने जीवन के कल 78 वर्ष पूरे करने जा रहे पंडित जसराज एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि वह शास्त्रीय संगीत के भविष्य को लेकर उत्साहित हैं। उन्होंने कहा कि इंडियन आइडल और सारेगामा जैसे टीवी रियलिटी-शो के कारण युवा पीढ़ी की शास्त्रीय संगीत में रूचि बढ़ रही है।

जसराज के अनुसार शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में यदि एक हजार से अधिक श्रोता आ जाएँ तो उसे बेहद सफल कार्यक्रम माना जाता है, लेकिन इन रियलिटी-शो में दस-दस हजार तो दर्शक रहते हैं और टीवी के माध्यम से इसे लाखों लोग देखते हैं। यह एक उत्साहजनक बात है।

पिछले करीब पाँच दशक से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अपनी विशिष्ट जगह बनाने वाले पंडित जसराज ने कहा ऐसा नहीं है कि टीवी चैनलों ने शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए इन कार्यक्रमों को शुरू किया है। यह तो महज दुर्घटनावश हो गया।

उन्होंने कहा कि यह ऐसी ही बात है कि सरकार देश की आर्थिक प्रगति के लिए अपनी पीठ ठोकती है जबकि इसके पीछे कंपनियों के प्रयासों और हमारे पेशेवरों की मेहनत छिपी है। मौजूदा फिल्मी संगीत के बारे में पूछने पर पंडित जसराज ने कहा कि संगीत सिर्फ संगीत होता है। उसे आप श्रेणियों में मत बाँटिए। फिल्मों का संगीत लोगों की रूचियों के आधार पर बनता है। लोकप्रिय संगीत की अपनी सीमाएँ होती हैं।

शास्त्रीय संगीत में किए जा रहे प्रयोगों की चर्चा करते हुए पंडित जसराज ने कहा कि उन्होंने तमाम संस्कृत रचनाओं को गाना शुरू किया। इसे लोगों ने काफी पसंद किया। अब तो कई गायकों ने संस्कृत रचनाओं को गाना शुरू कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि आज भी पंडित जसराज का कोई भी कार्यक्रम उनके द्वारा गाए गए 'गोविंद दामोदर माधवेती' के बिना पूरा नहीं होता जो भक्तिपरक संस्कृत रचना है।

उनकी एक अन्य प्रसिद्ध रचना 'टेम्पल म्यूजिक' के बारे में पूछने पर पंडित जसराज ने कहा कि करीब दो दशक पहले आया यह कैसेट दरअसल ब्रज के मंदिरों में गाये जाने वाले हवेली संगीत या समाज गायन पर आधारित है। इसमें सूरदास सहित प्रसिद्ध भक्त कवियों के शास्त्रीय रागों पर आधारित पदों को विशिष्ट गायन शैली में पेश किया जाता है। वह इस तरह की कुछ और संगीत रचनाओं को शीघ्र लाने के बारे में विचार कर रहे हैं।

नई पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दिए जाने के बारे में बारे में पूछने पर पंडित जसराज ने कहा कि आज संगीत सीखने के तमाम माध्यम हैं। देश विदेश में स्कूल चल रहे हैं, लेकिन उनके जमाने में ऐसा नहीं था। उस समय लोग अपने गुरू से सीखते थे या फिर रिकॉर्ड एवं रेडियो के माध्यम से अन्य बड़े गायकों को सुनते थे।

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि वह कहा करते थे मैं तो महज एक रेडियो आर्टिस्ट हूँ। पंडित जसराज ने कहा कि उन्हें भी संगीत के क्षेत्र में खड़ा करने में रेडियो की अहम भूमिका रही है।

प्रख्यात गायिका बेगम अख्तर से बचपन में बेहद प्रभावित पंडित जसराज को शास्त्रीय संगीत की शुरुआती शिक्षा उनके पिता पंडित मोतीराम ने दी थी। पिता के निधन के बाद उन्होंने कुछ समय तबला भी बजाया।

मेवात घराने के पंडित जसराज ने बाद में अपने बड़े भाई मुनीराम से संगीत की विधिवत शिक्षा ली। लंबे रियाज और अपनी सधी हुई आवाज की बदौलत पंडित जसराज ने शीघ्र ही हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी विशिष्ट जगह बना ली।
 

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