दिन का द्वितीय प्रहर ७ बजे से १० बजे तक
Todi
Miyan ki Todi, often simply referred to as Todi or Darbari Todi (IAST: Toḍi), is a Hindustani classical raga which gave its name to the Todi thaat, one of the ten types of classical music according to the musicologist Bhatkhande. Ragas from the Todi raganga (class of ragas) include Todi (a.k.a. Miyan ki Todi) itself, Bilaskhani Todi, Gujari Todi (also called Gurjari Todi), Desi Todi, Hussaini Todi, Asavari Todi (more commonly known as Komal Rishabh Asavari), and Bahaduri Todi.
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Basant Mukhari
राग बसंत मुखारी दिन के रागों में बडा ही मीठा परंतु कठिन राग है। इस राग में पूर्वांग में राग भैरव (सा रे१ ग म) और उत्तरांग में राग भैरवी (प ध१ नि१ सा') का समन्वय है। इसलिये इसे गाने के लिये बहुत रियाज कि आवश्यकता होती है।
यह स्वर संगतियाँ राग बसंत मुखारी का रूप दर्शाती हैं - रे१ रे१ सा ; रे१ ग ; ग ग म ; म ग म प ; प म ; प ध१ नि१ ; नि१ ध१ प म ग ; रे१ ग म प म ; नि१ ध१ ; रे१' सा' ; ध१ नि१ ध१ प ; प म ग म ; रे१ ग म प म ; ग म रे१ रे१ सा ; ,नि१ ,ध१ ,नि१ सा ; रे१ ग म ; ग प म ग रे१ सा ;
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Bilaskhani Todi
यह राग, भैरवी थाट से उत्पन्न होता है। यह राग मियाँ तानसेन के पुत्र बिलास खान ने बनाया था और उनके ही नाम से प्रचलित है। इसके पास के राग भैरवी और कोमल रिषभ आसावरी हैं। इसका चलन तोडी के समान होने से इसमें गंधार तोडी के ही समान अति कोमल लगाना चाहिये। इस राग में पंचम न्यास स्वर है, परन्तु अवरोह में इसको छोड़ा जाता है, जैसे सा रे१ ग१ प ; प ध१ प ; प ध१ नि१ ध१ म ग१ रे१ ; रे१ ग१ रे१ सा।
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Lanka Dahan Sarang
यह सारंग का प्राचीन प्रकार है जो की वर्त्तमान में अधिक प्रचलन में नहीं है। राग वृंदावनी सारंग के अवरोह में धैवत और कोमल गंधार का उपयोग होने से इस राग का स्वरुप प्रकट होता है। इस राग में कोमल गंधार का प्रयोग इस तरह से किया जा सकता है जैसे - ध प रे ग१ रे सा - देसी समान या रे ग१ रे सा - जयजयवंती समान। ध नि१ प का प्रयोग बहुत ही अल्प है और धैवत का उपयोग भी कभी कभी ही किया जाता है।
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Gurjari Todi
राग तोडी में पंचम स्वर को वर्ज्य करने से एक अलग प्रभाव वाला राग गुर्जरी तोडी बनता है। इस राग को गुजरी तोडी भी कहते हैं। इस राग की प्रकृति गंभीर है। यह भक्ति तथा करुण रस से परिपूर्ण राग है।
राग तोड़ी की अपेक्षा इस राग में कोमल रिषभ को दीर्घ रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग गुर्जरी तोडी का रूप दर्शाती हैं -
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Sundarkali
राग सुंदरकली एक मधुर परंतु नया और अप्रचलित राग है। यह राग तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जाता है।
यह स्वर संगतियाँ राग सुंदरकली का रूप दर्शाती हैं - सा रे१ ग प ; प ग प ग रे१ सा ; ग प नि१ प ; प नि१ सा' ; सा' रे१' सा' नि१ प ग प ; ग प नि१ प ग रे१ सा ; ,नि१ सा रे१ सा ;
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Parameshwari
यह राग पंडित रवि शंकर जी द्वारा रचित है। यह राग बहुत ही मधुर है लेकिन अप्रचलित है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है।
यह स्वर संगतियाँ राग परमेश्वरी का रूप दर्शाती हैं - सा रे१ ग१ म ; ग१ म ध म ; म ध नि१ सा' ; ध नि१ रे१' सा' ; सा' नि१ ध म ; म ग१ रे१; ग१ रे१ ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ रे१ सा ;
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Dev Gandhar
Dev Gandhar
Thaat: Asavari
Jati: Audav-Sampooran (5/7)
Vadi: D
Samvadi: G
Vikrit: G,D,N komal
Virjit: R, D in Aroh
Aroh: S g m P n S*
Avroh: S* n d P m g R S
Time: Day Second Pehar
इस राग का विस्तार राग जौनपुरी के समान होता है। राग गांधारी भी इसके पास का राग है परन्तु राग गांधारी में कोमल रिषभ लिया जाता है। जबकि देव गंधार में रिषभ शुद्ध है। जौनपुरी और गांधारी में आरोह में गंधार वर्ज्य है। परन्तु देव गंधार में आरोह में शुद्ध गंधार लिया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग देव गन्धार का रूप दर्शाती हैं -
राग के अन्य नाम
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जौनपुरी
Jonpuri
Thaat: Asavari
Jati: Chhadav-Sampooran (6/7)
Vadi: D
Samvadi: G
Vikrit: G,D & N komal
Virjit: G in aroh
Aroh: S R m P d n S*
Avroh: S* n d P m g R S
Time: Day Second Pehar
Jaunpuri is an Shadhav – Sampurna (consists of 6 notes in Aaroh and 7 notes in Aavroh) raga from the Hindustani music tradition. It is one of the ragas of choice for songs which show Bhakti or Grandeur.
WHEN IS RAAG JAUNPURI SUNG?
Raag Jaunpuri is usually sung in the morning from 9 am – 12 pm.
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Charukeshi
राग चारुकेशी अपेक्षाकृत नया राग है जिसे दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति से लिया गया है। यह बहुत ही मधुर राग है जिसे तीनों सप्तकों में बिना किसी रोक टोक के गाया जा सकता है। धैवत और निषाद कोमल होने के कारण यह राग उत्तरांग मे अनूठी सुन्दरता दर्शाता है।
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