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गोरख कल्याण

Gorakh Kalyan

यह एक बहुत ही मीठा और प्रभावशाली राग है। आरोह में तीन स्वर वर्ज्य होने के कारण इस राग की जाति सुरतर कहलाती है।

इस राग में मध्यम एक महत्वपूर्ण स्वर है जो इस राग का वादी और न्यास स्वर है। इसी कारण यह राग नारायणी से अलग हो जाता है, जिसमें न्यास और वादी स्वर पंचम है। गोरख कल्याण में मन्द्र सप्तक का कोमल निषाद एक न्यास स्वर है जो इस राग की पहचान है। आरोह में निषाद वर्ज्य है जिसके कारण यह राग बागेश्री से अलग हो जाता है। परन्तु कोमल निषाद को आरोह में अल्प स्वर के रूप में लगाते हैं जो इस राग की सुंदरता बढ़ाता है जैसे - ,ध ,नि१ रे सा या ,नि१ सा रे सा

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